भारत दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ का जनसंख्या डैशबोर्ड बता रहा है कि भारत की आबादी १४२.८६ करोड़ हो गई है, जो चीन से करीब ५७ लाख ज्यादा है। लेकिन भारत के पास इसका आधिकारिक आंकड़ा नहीं है क्योंकि २०११ के बाद २०२१ में जो जनगणना होनी थी वह नहीं हुई है। सो, आखिरी जनगणना के १२ साल बाद आबादी का आंकड़ा अनुमानों पर आधारित है।
सब जानते हैं कि पिछले १२ साल में दुनिया तेजी से बदली और आबादी नियंत्रित करने के जो उपाय हुए थे उनका व्यापक असर दिखा है। लेकिन गिनती होती तो पता चलता कि किस समुदाय और किस भौगोलिक इलाके में किस तरह से जनसंख्या संरचना में बदलाव आया है।
पहले कोरोना वायरस की महामारी की वजह से जनगणना टली थी और फिर लोकसभा चुनाव की वजह से इसके टले रहने की संभावना है। मार्च २०२० में जब भारत में कोरोना का विस्फोट हुआ उस समय जनगणना की तैयारी चल रही थी। डिजिटल तरीके से गिनती के लिए कर्मचारियों का प्रशिक्षण शुरू हो गया था लेकिन कोरोना की वजह से उसे स्थगित करना पड़ा। कोरोना महामारी खत्म होने में दो साल से ज्यादा समय लग गया। मार्च २०२२ में रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया ने जनगणना के नियमों में कुछ बदलाव किया। कहा गया कि अब नागरिक जनगणना और नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर में खुद ही अपनी गिनती करा सकते हैं। इसके बाद ऐसा लग रहा था कि मकानों की सूची बनाने का काम २०२२ में हो जाएगा।
लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पूरा २०२२ बीतने के बाद रजिस्ट्रार जनरल ने दिसंबर में सभी राज्यों को चिट्ठी लिखी, जिसमें ३० जून २०२३ तक भौगोलिक सीमाओं में बदलाव का काम पूरा करके उसे फ्रीज करने को कहा गया। ध्यान रहे जब राज्य अपने यहां भौगोलिक सीमाओं में बदलाव को फ्रीज करते हैं उसके दो-तीन महीने बाद ही गिनती का काम शुरू हो सकता है। इसका मतलब है कि ३० जून की सीमा खत्म होने के दो-तीन महीने बाद यानी सितंबर के अंत या अक्टूबर के पहले हफ्ते से जनगणना शुरू हो सकती थी। परंतु अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को देखते हुए यह संभव नहीं है।
सबसे दिलचस्प यह है कि रजिस्ट्रार जनरल की ओर से राज्यों को प्रशासनिक सीमा में बदलाव को फ्रीज करने की समय सीमा दिसंबर २०१७ से दी जा रही है। उस समय ३१ दिसंबर २०१९ तक प्रशासनिक सीमा में बदलाव को फ्रीज करने को कहा गया था। उसके बाद से कई बार यह सीमा बढ़ाई जा चुकी है। हालांकि जनगणना में देरी का एक कारण यह भी बताया जा रहा है कि विपक्षी पार्टियां जातियों की गिनती की बात कर रही हैं और जातीय जनगणना से भाजपा को राजनीतिक नुकसान दिख रहा है। विपक्ष का आरोप है कि जातियों की गिनती रोके रखने के लिए जनगणना रोक दी गई है। यह देखना दिलचस्प होगा कि लोकसभा चुनाव के बाद भी गिनती होती है या सीधे २०३१ के लिए तैयारी होती है।
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