भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपनी मास्को यात्रा के दौरान रूस के साथ भारत के पारंपरिक और दोनों देशों के लिए “लाभदायक” साबित हुए रिश्ते की चर्चा पूरे उत्साह से की। इस यात्रा के दौरान कुडनकुलम परमाणु संयंत्र के अगले चरण में सहयोग का करार हुआ। साथ ही भारत को रूस के कच्चे तेल एवं अन्य खनिजों का सबसे बड़ा बाजार बनाने का दावा किया गया। यह ऐलान भी हुआ भारत अगले वर्ष यूरेशियन इकॉनमिक यूनियन (यूएईयू) के साथ मुक्त व्यापार समझौते के लिए वार्ता शुरू करेगा।
यूएईयू पांच पूर्व सोवियत गणराज्यों का मुक्त व्यापार क्षेत्र है, जिसमें स्वाभाविक रूप से रूस सबसे बड़ी ताकत है। जयशंकर ने रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन की प्रशंसा करते हुए उन्हें बहुपक्षीय दुनिया के निर्माण की प्रेरक शक्ति बताया। ये सारी बातें रूसी नेताओं को कर्णप्रिय लगी होंगी। नतीजा यह हुआ कि पुतिन ने जयशंकर से मुलाकात की, जबकि आम तौर पर वे विदेश मंत्रियों से नहीं मिलते हैं। पुतिन और रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने भी भारत को कर्णप्रिय लगने वाली कई बातें कहीं।
मगर हकीकत यह है कि भारत-रूस संबंध की वह गरमाहट फिलहाल मौजूद नहीं है, जो इस संबंध को एक विशेष रूप देती थी। इस बात की सबसे बड़ी मिसाल यही है कि यह लगातार दूसरा साल रहा, जब दोनों देशों में हर साल होने वाली शिखर वार्ता नहीं हुई। इसीलिए इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जगह जयशंकर मास्को गए। विदेश मंत्री ने यह उम्मीद जरूर जताई है कि २०२४ के आखिर में यह सिलसिला फिर शुरू हो सकता है। लेकिन बदलती भू-राजनीति कुछ अन्य संकेत देती है। एक तरफ रूस और चीन का गठजोड़ अमेरिकी वर्चस्व को तोड़ कर नई विश्व व्यवस्था बनाने में जुटा हुआ है, वहीं इस दौर में भारत अमेरिकी धुरी के बेहद करीब पहुंच गया है। इसका परिणाम भारत-रूस संबंधों पर पड़ा है। इसके बावजूद दोनों देश एक दूसरे के लिए कर्णप्रिय बातें कहते हैं, तो उसकी वजह है कि रक्षा से लेकर व्यापार तक के कई मामलों में दोनों के पास एक दूसरे का विकल्प नहीं है। इसलिए संबंध कायम है, लेकिन गरमाहट गायब हो गई है।