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केरल: सत्ता का दुरुपयोग

अवधेश कुमार

केरल की वाम मोर्चा सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों को प्रतिबंधित करने का आदेश खुले समाज एवं लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास करने वाले सभी के लिए चिंता का कारण होना चाहिए। इसी तरह की कोशिश तमिलनाडु की द्रमुक नेतृत्व वाली सरकार भी कर रही है।
केरल में सरकारी त्रावनकोर देवासम बोर्ड ने एक सर्कुलर या परिपत्र जारी कर मंदिरों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों को प्रतिबंधित कर दिया है। इस बोर्ड के नियंत्रण में करीब १२०० मंदिर हैं। तमिलनाडु पुलिस ने संघ के रूट मार्च यानी पथ संचलन की अनुमति देने से इनकार कर दिया।
पुलिस का कहना था कि पथ संचलन के रास्ते में मस्जिद और चर्च के साथ कुछ पार्टियों के कार्यालय हैं और शांति भंग होने की आशंका है। इन दोनों सरकारी कदमों को देखें तो निष्कर्ष यही आता है कि ये संघ के बढ़ते जनाधार को सहन नहीं कर पा रहे और सत्ता का दुरुपयोग कर येन-केन-प्रकारेण उसके कार्यक्रमों को बाधित करने की कुचेष्टा में संलिप्त हैं। केरल सरकार नियंत्रित बोर्ड के सकरुलर की भाषा इतनी सख्त है कि सामान्य तौर पर बोर्ड के अधिकारियों-कर्मचारियों के सामने इसके पालन करने की शत-प्रतिशत अपरिहार्यता है। सर्कुलर में अधिकारियों से मंदिरों में औचक निरीक्षण करने का निर्देश है ताकि उसके अनुसार यह पता चल सके कि क्या संघ या दूसरे विचारधारा वाले संगठन मंदिरों में सभा, हथियारों का प्रशिक्षण या शाखा वगैरह तो नहीं लगा रहे।
देवास्वोम विजिलेंस विंग को भी औचक छापेमारी का निर्देश भी है। इसका उद्देश्य भी यही पता करना है कि मंदिरों की संपत्तियों का कहीं यह संगठन अपने कार्यक्रमों प्रशिक्षणों आदि के लिए उपयोग तो नहीं कर रहे हैं। तमिलनाडु में पिछले वर्ष भी संघ के पथ संचलन को पुलिस ने अनुमति नहीं दी थी और सरकार मामला सर्वोच्च न्यायालय तक ले गई थी। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को फटकार लगाई थी। बावजूद इस वर्ष फिर वही रवैया पुलिस प्रशासन का रहा तो इसे क्या कहेंगे? उच्च न्यायालय ने पुलिस को डांट लगाते हुए कहा है कि इस तरह के तर्क सेक्यूलरवाद के ही विरुद्ध है। पुलिस पथ संचलन होने दे और ऐसी व्यवस्था करे ताकि वह शांतिपूर्वक संपन्न हो जाए।
यह उदाहरण कुछ राजनीतिक पार्टियों और नेताओं का संघ के प्रति आचरण को साबित करने के लिए पर्याप्त है। केरल सरकार ने कर्मचारियों और पुजारियों को चेतावनी दी है कि ऐसे संगठनों की उपस्थिति और उनके संचालन के बारे में टीडीबी प्रबंधन को सूचित नहीं करने वालों को कठोर कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा। किसी लोकतांत्रिक शासन प्रणाली के अंतर्गत इस तरह के फासिस्टवादी आदेश के लिए स्थान नहीं होना चाहिए। किसी भी विचारधारा का संगठन प्रतिबंधित नहीं है तो उसकी गतिविधियों पर अंकुश लगाने या उसे बाधित करने का कोई मान्य कारण नहीं हो सकता।
केरल सरकार ने पहली बार ऐसी कोशिश नहीं की है। २०१६ और २०२१ में भी इस तरह का परिपत्र जारी किया जा चुका है। २०२१ के आदेश में भी संघ परिवार पर अंकुश लगाने का निर्देश दिया गया था। उसमें भी मंदिर की संपत्तियों का उपयोग हथियार प्रशिक्षण के लिए न होने देने की बात थी।
२०१६ के आदेश में केरल के वर्कला में श्री सरकार देवी मंदिर में संघ के प्रशिक्षण पर प्रतिबंध लगाया था और वहां भी शब्द प्रयोग हथियारों का प्रशिक्षण ही था। साफ है कि २०१६ और २०२१ के सरकारी आदेशों का नीचे स्तर पर पालन नहीं हुआ। वास्तव में ये आदेश ऐसे हैं जिनका पालन न हो सकता है और न होना चाहिए। भाजपा की सरकारें भी कहीं वामपंथी पार्टियों की गतिविधियों को प्रतिबंधित करने का आदेश जारी करती है तो उसका भी पालन नहीं किया जा सकता। हम किसी के विचारों से सहमत हों या असहमत, संविधान के तहत उसको कानून की सीमाओं में काम करने की पूरी स्वतंत्रता है।
संघ ९८ वर्षो से काम कर रहा है। उसकी शाखाएं खुले मैदानों में लगती हैं। कभी यह नहीं देखा गया और न ही ऐसी कोई पुष्ट रिपोर्ट है कि आरएसएस अंधेरे में हथियारों का गैर कानूनी तरीके से प्रशिक्षण दे रहा हो। क्या २०१६ से २०२३ में केरल सरकार ने किसी मंदिर में संघ द्वारा रखे गए ऐसे हथियारों के भंडार पकड़ा है। नहीं, तो फिर इस तरह के आरोपों का कारण क्या है।
कहा जा रहा है कि पिछले महीने केरल उच्च न्यायालय ने श्री सरकार देवी मंदिर से जुड़े मामलों पर हथियारों के प्रशिक्षण और व्यायाम आदि पर रोक लगाने का आदेश दिया था। दरअसल, दो लोगों ने स्वयं को वरकला मंदिर का भक्त बताते हुए याचिका डाली थी और उसमें न्यायालय ने कहा है कि मंदिर के परिसर में सामूहिक अभ्यास या हथियारों के प्रशिक्षण से संबंधित कोई भी गतिविधि अवैध मानी जाएगी। मंदिर के अंदर शांतिपूर्ण माहौल बनाए जाने की आवश्यकता है। मंदिर की अनुष्ठानों और आस्था में राजनीति का कोई स्थान नहीं है। एक याचिका मंदिर में भगवा रंग के झंडे आदि को लेकर था।
इस पर उच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि किसी उपासक या भक्त को इस बात पर जोर देने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है कि मंदिर में त्योहारों के अवसर पर केवल भगवा या नारंगी रंगों की सजावट की चीजों का इस्तेमाल किया जाता है। तो न्यायालय ने भगवा रंग के प्रयोग न करने की अपील को ठुकराया किंतु दूसरे पर याचिकाकर्ताओं के अनुकूल आदेश दिया। उसमें कहीं भी संघ या किसी संगठन का नाम नहीं है। इसमें दो राय नहीं हो सकती कि मंदिर में पूजा पाठ के लिए शांतिपूर्ण वातावरण होना चाहिए, किंतु जहां तक हथियारों का प्रश्न है तो मंदिरों में अलग-अलग देवी-देवताओं के हाथों में ही हथियार हैं और उनकी लीलाओं में भी उनका प्रयोग होता है।
भारत में लाखों वर्षो से मान्य शास्त्रास्त्र हैं, जिनका उपयोग हमेशा धार्मिंक-सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यक्रमों व उत्सवों में होता रहा है। अनेक संगठन उनका उपयोग करते हैं। इनको न प्रतिबंधित किया गया न किया जाना चाहिए। यह मनुष्य में शौर्य और पराक्रम पैदा करते हैं। अगर किसी के विरुद्ध हिंसा के लिए इनका प्रशिक्षण या प्रयोग हो रहा है तो वह अवश्य अपराध की श्रेणी में आएगा। इसलिए इस तरह का आदेश सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति के ही विरुद्ध माना जाएगा। लोकतंत्र का सामान्य सिद्धांत है कि हम आपके विचारों से असहमत हो सकते हैं पर आप अपने विचार रखें, उसका प्रचार करें इसके प्रति भी हमारी प्रतिबद्धता होगी।

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