कण्टकावरणं यादृक्फलितस्य फलाप्तये।
तादृक्दुर्जनसङ्गोSपि साधुसङ्गाय बाधनं॥
भावार्थ : जिस प्रकार एक फलदायी वृक्ष के कांटे उसके फलों को प्राप्त करने में बाधा उत्पन्न करते हैं, वैसे ही दुष्ट व्यक्तियों की सङ्गति (मित्रता) भी साधु और सज्जन व्यक्तियों की सङ्गति में बाधा उत्पन्न करती है।