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Joshimath land subsidence: Cracks in the legendary Shankaracharya Math, Shivling broken, Shiv temple sunk, scene of fear

जोशीमठ भू धंसाव : पौराणिक शंकराचार्य मठ में दरारें, खंडित हुआ शिवलिंग, शिव मंदिर धंसा, खौफ का मंजर

चमोली, १० जनवरी। जोशीमठ के लिए आज हर कोई मिलकर प्रार्थना कर रहा है। पूरा शहर बर्बाद हो रहा है। जमीनोजद हो रहे इस शहर को अब बचा पाना कठिन सा लग रहा है। हालांकि केंद्र और राज्य दोनों की सरकारें इससे बचाने के लिए पूरी कोशिश कर रही है।
वहीं आदि गुरु शंकराचार्य मठस्थली भी भू-धंसाव का शिकार होने लगी है। मठस्थली में मौजूद शिव मंदिर करीब छह इंच धंस गया है। और यहां रखे हुए शिवलिंग में दरारें आ गई हैं। मंदिर के ज्योर्तिमठ का माधवाश्रम आदि शंकराचार्य ने बसाया था। यहां देशभर से विद्यार्थी वैदिक शिक्षा व ज्ञानार्जन के लिए आते हैं। वर्तमान में भी ६० विद्यार्थी यहां शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। दरअसल आदि गुरु शंकराचार्य मठस्थली के भीतर ही शिवमंदिर है। इस मंदिर में कई लोगों की मान्यता है । वर्ष २००० में शिवलिंग जयपुर से लाकर स्थापित किया गया था। इतना ही नहीं, मान्यता अनुसार शंकराचार्य आज से २५०० वर्षों पूर्व जिस कल्प वृक्ष के नीचे गुफा के अंदर बैठकर ज्ञान की प्राप्ति की थी। आज उस कल्प वृक्ष का अस्तित्व मिटने की कगार पर हैं। इसके अलावा परिसर के भवनों, लक्ष्मी नारायण मंदिर के आसपास बड़ी- बड़ी दरारें पड़ गई हैं। ज्योतिर्मठ के प्रभारी ब्रह्मचारी मुकुंदानंद ने बताया कि मठ के प्रवेश द्वार, लक्ष्मी नारायण मंदिर और सभागार में दरारें आई हैं। इसी परिसर में टोटकाचार्य गुफा, त्रिपुर सुंदरी राजराजेश्वरी मंदिर और ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य की गद्दी स्थल है। मंदिर के पुजारी वशिष्ठ ब्रहमचारी ने जानकारी देते हुए बताया कि पिछले करीब १२-१३ माह से यहां धीरे-धीरे दरारें आ रहीं थीं। मगर किसी को यह अंदाजा तक नहीं था कि हालात यहां तक पहुंच जाएंगे। पहले दरारों को सीमेंट लगाकर रोकने का प्रयास किया जा रहा था। लेकिन पिछले सात-आठ दिन में हालात बिगडऩे लगे हैं। मंदिर करीब छह से सात इंच नीचे की ओर धंस चुका है। दीवारों के बीच गैप बन गया है। मंदिर में विराजमान शिवलिंग भी धंस रहा है। पहले उस पर चंद्रमा के आकार का निशान था जो कि अब अचानक बढ़ गया है। वहीं नृसिंह मंदिर परिसर में भी फर्श धंस रहा है। मठभवन में भी दीवारों में दरारें आने लगी हैं। यह फर्श २०१७ में डाला गया था, जिसकी टाइलें बैठने लगी हैं। कुल मिला कर जोशीमठ को हमारी प्रार्थनाओं की और उससे भी ज्यादा सख्त कार्यवाही की जरूरत है ताकि समय रहते हालात काबू में लाए जा सकें।

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