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हमास के खिलाफ इज़रायली युद्ध का हासिल

७ अक्टूबर को हमास के हमले के बाद शुरू हुई यह लड़ाई बेहद विध्वंसक रही है। इस लड़ाई में इज़राइल ने अपना जो मकसद घोषित किया, उसे हासिल करना लगभग असंभव है। और इसलिए ऐसा हो भी नहीं पाया है। यह मकसद हमास का खात्मा है। लेकिन किसी संगठन को, जो एक मकसद के लिए लड़ रहा हो और किसी क्षेत्र में एक विचार के रूप स्थापित हो गया हो, उसका जड़-मूल से नाश करना असंभव होता है। अगर गजा के सभी लोगों की हत्या कर दी जाए, तब भी हमास के समर्थक, और स्वतंत्र फिलस्तीनी राज्य की स्थापना को अपना मकसद मानने वाले लोग दूसरे क्षेत्रों या यहां तक कि अन्य देशों में भी जीवित बने रहेंगे। साथ ही उसे इस मकसद के लिए कार्यकर्ता मिलते रहेंगे। इसलिए जब तक मकसद बाकी रहता है, इस तरह के संगठन जब-तब, जहां-तहां से पनपते रहते हैं।

फिलहाल, बात अगर हमास और फिलस्तीन तक सीमित रखें और लड़ाई रुकने के पहले तक का लेखा-जोखा लें, तो यह देखना अहम होगा कि सात अक्टूबर के बाद से चले घटनाक्रम में लाभ-हानि की गणना किसके पक्ष में है। चूंकि इस दौर में पहला वार हमास ने किया, इसलिए पहले उसके नजरिए से इस गणना पर ध्यान देते हैं।

सात अक्टूबर को हमास ने भारी जोखिम उठाया। उसकी बहुत महंगी कीमत गाजा और पश्चिमी किनारे की फिलस्तीनी आबादी और यहां तक कि लेबनान स्थित फिलस्तीन समर्थक समूहों को चुकानी पड़ी है। उसके हमलों के बाद इजराइल ने बदले की जो बेलगाम कार्रवाई की, उसमें १५ हजार से अधिक लोग मारे गए। उनमें नौ हजार बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग हैं। मकानों और बुनियादी ढांचे को जो नुकसान हुआ, उसका आकलन अभी होना बाकी है।

जहां तक इजरायल की बात है तो उसे सामरिक बढ़त तो निसंदेह हासिल हुई है। लेकिन इजरायली सैन्य बलों के भयानक और बर्बर हमले ने पश्चिमी मीडिया में सवाल खड़े करना शुरू कर दिया है। अब इजरायल हमास के खात्मे और विश्व पटल पर अपने समर्थन के बीच संतुलन कैसे बनाए रखता है, यह समय ही बता पाएगा।

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