अंतरराष्ट्रीय संस्था- वेराइटी ऑफ डेमोक्रेसीज (वी-डेम) ने दोहराया है कि भारत अब लोकतंत्र नहीं है। उसने भारत को निर्वाचित अधिनायकतंत्र की श्रेणी में २०१८ में ही रख दिया था। उसके बाद से वी-डेम के सूचकांक में भारत का दर्जा और गिरा ही है। इस बीच लोकतंत्र की सूरत पर रिपोर्ट तैयार करने वाली अमेरिकी संस्था फ्रीडम हाउस भारत को आजाद देशों की श्रेणी से गिराकर उसे आंशिक आजादी वाले देशों की श्रेणी में रख चुकी है।
वी-डेम ने इस वर्ष अपने सूचकांक में १७९ देशों को शामिल किया है। उनके बीच भारत को १०४वें पायदान पर रखा गया है। संस्था ने कहा है- २०१३ के बाद भारत में तानाशाही प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी है। इस तरह वह उन देशों में शामिल हो गया है, जहां हाल के समय में तानाशाही सबसे तेजी से बढ़ी है। इस रूप में भारतीय लोकतंत्र उस जगह पहुंच गया है, जहां १९७५ में था- यानी जब देश में इमरजेंसी लागू हुई थी।
वी-डेम ने कहा है कि इस समय दुनिया में तानाशाही प्रवृत्ति बढऩे की लहर आई हुई है। यह प्रक्रिया ४२ देशों में चल रही है, जहां की कुल आबादी दो अरब ८० करोड़ हैं- यानी जहां दुनिया की कुल आबादी का ३५ प्रतिशत हिस्सा रहता है। दुनिया की १८ फीसदी आबादी भारत में है। इस तरह जो आबादी बढ़ रही तानाशाही प्रवृत्ति वाले देशों में है, उनका आधा हिस्सा भारत में मौजूद है। भारत की वर्तमान सरकार ऐसी रिपोर्टों को तव्वजो नहीं देती (या कम-से-कम वह ऐसा करने के संकेत ही देती है)। सार्वजनिक बयानों में वह इन्हें भारत विरोधी सोच से प्रेरित करार देती है।
मगर यह बात अवश्य याद रखनी चाहिए कि भारत की पहचान अगर एक लोकतांत्रिक देश की बनी, तो वह उन पैमानों पर बेहतर सूरत की वजह से ही बनी, जिनको लेकर वी-डेम या फ्रीडम हाउस जैसी संस्थाएं सूचकांक बनाती हैँ। अब इन कसौटियों पर भारत का दर्जा गिर रहा है, तो इसके लिए उन संस्थाओं की कथित दुर्भावना को कारण मानना अतार्किक होगा। वैसे भी जो बातें वो संस्थाएं कह रही हैं, वैसा ही अनुभव बहुत सारे भारतवासियों का भी है।
हालांकि इस रिपोर्ट के निष्कर्ष को लेकर विवाद तथा बहस की गुंजाइश है, लेकिन तथ्यों पर बात करने से सकारात्मक सामने आती है। मात्र किसी दल या व्यक्ति विशेष के आर्थिक या राजनीतिक प्रभाव में आकर निष्कर्ष को स्वीकारना या नकारना गलत होगा।
