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नीयत से बदल जाते हैं परिणाम

नीयत ऐसी वस्तु है, जो कभी भी, किसी की भी बदल सकती है, चाहे राजा हो या साधारण मनुष्य। नीयत के बदलने से बदल जाता है भाग्य और परिणाम। इसी भाव को स्पष्ट करती हुई एक कहानी है।
एक राजा अक्सर अपनी प्रजा का सुख-दुःख जानने के लिए भेष बदलकर घूमता था। एक दिन महल लौटते समय काफी देर हो गई, तो वह एक किसान के खेत में विश्राम करने के लिए ठहर गया। राजा को प्यास लगी, तो उसने किसान की बूढ़ी मां से पानी मांगा। वृद्धा ने सोचा, यह पथिक बहुत थका लग रहा है, इसे सादे पानी की जगह गन्ने का रस पिला देती हूं। यह सोचकर उसने उस आदमी के सामने अपने खेत से एक गन्ना तोड़ा और उसे निचोड़कर एक गिलास रस निकालकर दे दिया। भेष बदले हुए राजा ने जब गन्ने का रस पीया तो उसकी मिठास और शीतलता से वह बड़ा तृप्त हुआ।
उसने वृद्धा से पूछा, ‘माई! राजा तुमसे इस खेत का क्या लगान लेता है?’ वृद्धा बोली, ‘हमारे देश का राजा बड़ा दयालु है, बहुत थोड़ा लगान लेता है, मेरे पास बीस बीघा खेत है, उसका साल में एक रुपया लेता है।’
यह सुनकर भेष बदले राजा की नीयत बदल गई, उसके मन में लोभ आ गया, उसने सोचा, ‘मैं बीस बीघे खेत का लगान मात्र एक रुपये लेता हूं।’ उसने मन ही मन तय किया कि शहर पहुंचकर मंत्री से गन्ने के खेतों का लगान बढ़ाने का आदेश देगा।
भेष बदला राजा वहां कुछ देर और रुका, चलने से पहले उसने वृद्धा माई से फिर गन्ने का रस मांगा। वृद्धा ने उसके सामने एक गन्ना फिर तोड़ा और उसे निचोड़ा। लेकिन इस बार बहुत कम रस निकला, मुश्किल से चौथाई गिलास भरा होगा। वृद्धा ने दूसरा गन्ना तोड़ा, इस तरह चार- पांच गन्नों को तोड़ा, तब जाकर गिलास भरा। भेष बदले राजा ने जब यह दृश्य देखा तो उससे रहा नहीं गया।
उसने वृद्धा से पूछा, ‘पहली बार तो एक गन्ने से ही पूरा गिलास भर गया था, इस बार वही गिलास भरने के लिए चार-पांच गन्ने तोड़ने पड़े, इसका क्या कारण है?’ किसान की वृद्ध मां बोली, ‘यह बात तो मेरी समझ में भी नहीं आई। धरती का रस तो तब सूखता है, जब राजा की नीयत में फर्क और मन में लोभ आ जाए, पता नहीं बैठे-बैठे इतनी देर में ऐसा कैसे हो गया।’
वृद्धा को नहीं पता था कि उसके सामने स्वयं राजा खड़ा है, लेकिन उसके ज्ञान को देखकर भेष बदला राजा स्तम्भ रह गया कि वाकई राजा की नीयत बदलते ही गन्ने का रस सूख गया।

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