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भू-राजनीतिक तनाव में फंसी भारत की आर्थिकी

अजीत द्विवेदी

यह संयोग है कि छह अक्टूबर को भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक समीक्षा नीति की द्वैमासिक बैठक में नीतिगत ब्याज दरों में बदलाव नहीं करने और साथ ही देश के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की दर को भी साढ़े छह फीसदी पर स्थिर रखने का फैसला हुआ और उसके अगले दिन यानी सात अक्टूबर को इजराइल और हमास की जंग छिड़ गई। दुनिया पहले ही करीब डेढ़ साल से एक जंग झेल रही है। पिछले साल से यूक्रेन और रूस की जंग चल रही है। आर्मेनिया और अजरबैजान का युद्ध किसी तरह से तुर्की की मध्यस्थता से सुलझा है और मध्य एशिया में शांति बनी है और इस बीच पश्चिम एशिया में नई जंग शुरू हो गई है। अभी तो इजराइल और हमास के बीच जंग चल रही है लेकिन इसका दायरा बढऩे में समय नहीं लगेगा। लेबनान की ओर से हिजबुल्ला ने हमला शुरू कर दिया है और यमन की ओर से हूती विद्रोही हमले कर रहे हैं। इसके अलावा जिस तरह से सीरिया में स्थित ईरान के ठिकानों पर अमेरिका ने बमबारी की है उससे जंग का दायरा बढऩे का खतरा पैदा हो गया है।
इस भू-राजनीतिक अस्थिरता की वजह से वैश्विक स्तर पर अर्थव्यवस्था के प्रभावित होने का खतरा पैदा हो गया है। रूस और यूक्रेन की जंग की ही तरह इजराइल और हमास की लड़ाई लंबी चलती है और इसका दायरा बढ़ता है तो इसका असर पूरी दुनिया के साथ साथ भारत पर भी होगा। ध्यान रहे, रूस और यूक्रेन की जंग ने भारत को ज्यादा प्रभावित नहीं किया क्योंकि अमेरिका और यूरोप की पाबंदियों के बावजूद भारत की पेट्रोलियम कंपनियों ने रूस से कच्चा तेल खरीदा और उसे रिफाइन करके दुनिया के बाजार में बेचा। सो, युद्ध की अवधि के दोनों वित्त वर्ष में कच्चे तेल की कीमत में ज्यादा बदलाव नहीं हुआ और भारत में भी कीमत स्थिर रही। कोरोना के तुरंत बाद शुरू हो गए युद्ध की वजह से अनेक जरूरी चीजों की आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित हुई लेकिन भारत अछूता रहा और अर्थव्यवस्था की रफ्तार भी ज्यादा प्रभावित नहीं हुई। लेकिन एक दूसरे भौगोलिक क्षेत्र में युद्ध शुरू होने से अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है।
हालांकि इजराइल और हमास की जंग शुरू होने के बाद अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ ने भारत की जीडीपी की अनुमानित दर में मामूली बढ़ोतरी की और उसे ६.१ से बढ़ा कर ६.३ फीसदी किया। लेकिन आईएमएफ ने भी माना है कि रूस व यूक्रेन युद्ध और बढ़ते भू राजनीतिक तनाव के अलावा कई स्थितियां ऐसी हैं, जिनसे अर्थव्यवस्था पर असर होगा। उसने ऊंचे ब्याज दर की मिसाल दी है।
गौरतलब है कि अमेरिका में उच्च ब्याज दर की वजह से बॉन्ड से होनेवाली आय बढ़ गई है, जिससे वैश्विक निवेश प्रभावित हुआ। भारतीय रिजर्व बैंक ने बताया है कि अमेरिकी बॉन्ड्स से होने वाली आय पांच फीसदी तक पहुंच गई है, जो १६ साल का सबसे ऊंचा स्तर है। दुनिया के दूसरे अनेक देशों में ब्याज दर ऊंची होने से विकास दर पर बड़ा असर पड़ा है। आईएमएफ ने कहा है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था अपनी रफ्तार खो रही है।
इसलिए, २०२३ के लिए वैश्विक वृद्धि दर अनुमान को घटाकर तीन फीसदी किया गया है। उसने यह भी कहा है कि २०२४ में वैश्विक अर्थव्यवस्था की रफ्तार और धीमी होकर २.९ फीसदी रह जाएगी। आईएमएफ के मुख्य अर्थशास्त्री पियरे ओलिवियर ने कहा है- कोरोना और यूक्रेन पर रूस के हमले सहित कई झटकों से तीन साल में दुनिया भर के आर्थिक उत्पादन में कोविड पूर्व रूझानों की तुलना में ३,७०० अरब डॉलर की कमी आई है। हालांकि भारत के लिए अच्छी स्थिति यह है कि पश्चिमी देशों और चीन के बीच दूरी बढ़ी है, जिसका लाभ भारत को मिल सकता है। विश्व बैंक के अध्यक्ष अजय बंगा ने भी कहा है कि इजराइल और हमास की जंग का बड़ा आर्थिक असर होगा।
बहरहाल, रिजर्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष दोनों ने इजराइल और हमास की जंग लंबा चलने या इसका दायरा बढऩे के बाद की स्थितियों को विकास दर के आकलन में शामिल नहीं किया है। अगर जंग तेज होती है या इसका दायरा बढ़ता है तो कच्चे तेल की आपूर्ति प्रभावित होगी और उसकी कीमतों में बढ़ोतरी होगी। इसके अलावा खाने-पीने की चीजों और फर्टिलाइजर की आपूर्ति व कीमत दोनों प्रभावित होंगे। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण इसकी आशंका जता चुकी हैं कि खाद्यान्न, कच्चा तेल और फर्टिलाइजर महंगे हो सकते हैं। ध्यान रहे भारत में अगले साल लोकसभा का चुनाव होना है इसलिए केंद्र सरकार के सामने महंगाई को काबू में रखने की चुनौती है।
अगर विश्व बाजार प्रभावित होता है और जरूरी चीजों की आपूर्ति प्रभावित होती है तब भी राजनीतिक कारणों से भारत को महंगाई दर नहीं बढऩे दी जाएगी। रिजर्व बैंक पर दबाव होगा कि वह ब्याज दरों में कमी न करे। अगर ब्याज दर नहीं घटाए जाते हैं तो विकास दर ठहरी रहेगी। सो, अगर युद्ध की वजह से आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित होने और कीमत बढऩे का बोझ सरकार जनता के ऊपर नहीं डालती है तब भी भारतीय अर्थव्यवस्था के बड़े पैरामीटर यानी मैक्रो इकोनॉमिक्स प्रभावित होगी। मॉनसून और अल नीनो का असर अलग परेशान करने वाला होगा। भारत में मामूली ही सही लेकिन खराब मॉनसून की वजह से चावल का उत्पादन प्रभावित होगा। चुनावी साल में महंगाई को काबू में रखने के लिए भारत सरकार को लगातार कभी चावल तो कभी चीनी तो कभी प्याज और टमाटर का आयात-निर्यात नियंत्रित करना पड़ रहा है।
भारत सरकार की उम्मीदें इस बात पर टिकी हैं कि वित्त वर्ष २०२२-२३ की आखिरी दो तिमाही के मुकाबले चालू वित्त वर्ष यानी २०२३-२४ की पहली दो तिमाही में कच्चे तेल की कीमत अपेक्षाकृत कम रही है इसलिए अगर पिछले वित्त वर्ष के उच्च स्तर यानी १०९ डॉलर तक भी कीमत जाती है तो उसका असर भारत झेल सकता है। दूसरी उम्मीद यह है कि त्योहारी सीजन में कार, बाइक से लेकर तमाम तरह के उत्पादों की बिक्री बढ़ेगी, जिससे तीसरी और चौथी तिमाही की विकास दर ऊंची रहेगी। अक्टूबर के जीएसटी के आंकड़ों से सरकार की उम्मीदें पूरी होती दिख रही हैं। अक्टूबर में सरकार ने १.७२ लाख करोड़ रुपए का जीएसटी इकट्ठा किया।
सरकार की तीसरी उम्मीद है कि कार और आवास दोनों के कर्ज की मांग बढ़ी है और त्योहारी सीजन में यह मांग जारी रहेगी। दूसरी ओर चिंता की बात यह है कि ग्रामीण इलाकों में गैर टिकाऊ वस्तुओं की मांग में कमी आई है और दूसरी ओर आईटी सेक्टर में अब भी छंटनी का दौर चल रहा है। ऐसा लग रहा था कि दूसरी तिमाही में छंटनी रूक जाएगी लेकिन छंटनी नहीं रूकी है और नई बहाली नहीं शुरू हो रही है। सो, बेरोजगारी के मोर्चे पर सरकार की चिंता बढ़ सकती है। अगर रोजगार के अवसर नहीं बढ़ते हैं तो लोगों के खर्च में कमी आएगी, जिससे विकास दर प्रभावित हो सकती है। इस तरह से यह एक दुष्चक्र की स्थिति बन रही है। खासकर महंगाई और बेरोजगारी के आंकड़ों की वजह से। सरकार को महंगाई काबू में रखनी है और विकास दर को भी नीचे नहीं आने देना है।

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