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भारत की ब्रिक्स दुविधा

पाकिस्तान ने ब्रिक्स की सदस्यता लेने के लिए औपचारिक रूप से आवेदन कर दिया है। गौरतलब है कि इसका ऐलान सबसे पहले मास्को स्थित पाकिस्तानी राजदूत ने किया। खबरों के मुताबिक रूस पाकिस्तान को ब्रिक्स समूह में लाने का पूरा समर्थन कर रहा है। हाल में रूस और पाकिस्तान के बीच कूटनीतिक और राजनयिक संपर्क बढ़ा है। उधर ब्रिक्स के मौजूदा अध्यक्ष दक्षिण अफ्रीका ने कुछ समय पहले ब्रिक्स संबंधी एक बैठक में पाकिस्तान को भी आमंत्रित किया था। चीन का हाथ तो हमेशा ही पाकिस्तान की पीठ पर रहता है। ऐसे ब्रिक्स के पांच मूल सदस्यों में से तीन का झुकाव इस समय पाकिस्तान के पक्ष में दिख रहा है। उधर जो छह नए सदस्य इस समूह में शामिल हुए हैं, उनमें से भी कई का साथ उसे मिल सकता है। उनमें सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और मिस्र शामिल हैं। इथियोपिया को भी इस पर कोई एतराज होगा, इसकी संभावना नहीं है। वैसे एतराज शायद ब्राजील और ईरान को भी नहीं हो।
इसीलिए यह सवाल गंभीर है कि इस हाल में भारत का क्या रुख होगा? ब्रिक्स में परंपरा आम सहमति से निर्णय लेने की है। ऐसे में भारत की अकेली असहमति भी पाकिस्तान की सदस्यता रोक सकती है। मगर ऐसा करते हुए भारत के अलग-थलग पडऩे का अंदेशा है। अभी हाल में इजराइल-फिलस्तीन युद्ध के मुद्दे पर हुई ब्रिक्स की ऑनलाइन शिखर बैठक में भारत का ऐसा अलगाव साफ नजर आया। उसके बाद कुछ टिप्पणियों में कहा गया कि भारत ब्रिक्स प्रक्रिया में अवरोध की तरह दिखने लगा है। जाहिर है, ऐसा कहने वाले लोग इसकी वजह अमेरिका के साथ भारत की बनी रणनीतिक निकटता में ढूंढते हैं। ब्रिक्स की सदस्यता अर्जी देते वक्त पाकिस्तान ने इन तमाम समीकरणों का आकलन किया होगा। हाल में पाकिस्तान ने दूसरे देशों में खालिस्तान समर्थकों और कश्मीरी अलगाववादियों की जान को भारत से खतरा का हौव्वा खूब खड़ा किया है। उसने इस बारे में डोजियर तैयार किया है। अनुमान लगाया जा सकता है कि आतंकवाद के मुद्दे पर भारत के एतराज को कमजोर करने की उसकी यह एक चाल है। इससे भारतीय विदेश नीति की चुनौतियां बढ़ी हैं।

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