आश्चर्य है कि अमेरिका और दक्षिण कोरिया के मध्य मदद-के-बदले मदद का खेल दुनिया को बुरा नहीं लग रहा है। मगर रूस और उत्तर कोरिया की खतरनाक जुगलबंदी से दुनिया खौफजदा है। इकानामिस्ट पत्रिका का मानना है कि दोनों देशों के बीच हो रहे सौदों से न सिर्फ यूक्रेन के लिए समस्या अधिक गंभीर होगी बल्कि एशिया में परमाणु हथियारों का खतरा भी बढ़ेगा। यह चिंता एकदम जायज है, और चीन भी इससे फिक्रमंद है। हालांकि चीन यूक्रेन युद्ध में शुरू से रूस का समर्थन कर रहा है, लेकिन वह रूस और उत्तर कोरिया की बढ़ती नजदीकियों से चिंतित है। परंपरागत रूप से चीन और उत्तर कोरिया के सम्बन्ध बहुत अच्छे नहीं रहे हैं लेकिन हाल के दौर में व्यापार, खाद्यान्न और ईधन के आयात के लिए वह चीन पर निर्भर रहा है। अत: चीन कुछ शर्तों के साथ, उत्तर कोरिया का समर्थन करता रहा है। लेकिन किम जोंग और पुतिन की मुलाकात के नतीजे में उत्तर कोरिया को न सिर्फ सैन्य तकनीकी बल्कि खाद्यान्न और ईधन भी हासिल हुए हैं। इसका मतलब है कि उत्तर कोरिया की चीन पर निर्भरता कम होगी और उत्तर कोरिया पर चीन की पकड़ भी। ऐसे हालात में आक्रामक चीन उत्तर कोरिया पर काबू पाने के लिए अमेरिका के प्रति अपने द्वेष को भुलाकर उससे हाथ मिला सकता है।
रूस और उत्तर कोरिया के बीच बढ़ती रिश्तों की गर्माहट के बावजूद इसमें संदेह है कि पुतिन उत्तर कोरिया को पूरी तरह कारगर आईसीबीएम बनाने या परमाणु शक्ति संपन्न पनडुब्बियां बनाने की तकनीक देंगे। क्योंकि रूस, उत्तर कोरिया और चीन के बीच आपसी परस्पर विश्वास इतना कम है कि इनके बीच का कोई भी गठजोड़ भरोसेमंद या टिकाऊ नहीं होगा।
कुछ भी हो, हर दिन दुनिया में नए खतरे, चुनौतियां, शत्रुता, मित्रता, दृष्टिकोण और अंतदृष्टि उत्पन्न हो रही हैं। और यह सब बदलते वक्त की फितरत है। हो सकता है एक दिन अमेरिका, चीन, और रूस अपने मतभेद, युद्धों की यादें और आपसी घृणा का इतिहास भुलाकर सबसे पहले तेजी से ताकतवर हो रहे तीनों के साझा शत्रु – उत्तर कोरिया – से मिलकर निपटने का कोई फैसला करें।