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गुरुदेव का गायत्री-भाष्य

कहा गया है गायत्री मंत्र के सैकड़ों अर्थ हैं। यहाँ गुरुदेव के द्वारा किया भाष्य पढ़िए।
(साभार राजीव रंजन चतुर्वेदी)

ओम् भूर्भुवः स्व तत्‌ सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्‌ !

हम उस वरणीय देवता [सविता] के तेज का ध्यान करते हैं ,

जो हमारी बुद्धि को प्रेरित करते हैं ।

गुरुदेव का गायत्री-भाष्य
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गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने गायत्रीमन्त्र पर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि जो लोग सत्यभाव से अपनी बुद्धि की साधना में लगे रहते हैं ,उन्होंने ही वास्तविक आस्तिकता का फल पाया है ! उन्होंने बुद्धि के रूप में उस देवता को माना है । वह देवता ,जिसने मनुष्य के मन के भीतर आत्मशक्ति के रूप में उसे धन्य किया है !

बुद्धि के रूप में जिस देवता का हमारे भीतर आविर्भाव है ,वह मनुष्य को अमृत के रास्ते ले जा रहा है !
इस बुद्धि के रूप में प्रकाशित होने वाले देवता को याद रखना है >> तं हि देवं आत्मबुद्धि-प्रकाशम्‌ । अपनी आत्मा के भीतर विराजमान ईश्वर को ओट में रख कर जो यह कहता है कि ईश्वर नहीं है ,वह लंबी-चौड़ी बातें बघार कर अपनी ही आत्मा की अवमानना कर रहा है।

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