नाइजर में हुए तख्तपलट से एकदम साफ हो गया है कि लोगों ने फ्रांस के बोलबाले को उतने ही जोश से खारिज किया है जितने जोश से उनके पूर्वजों ने फ्रेंच साम्राज्य को किया था। इस तरह फ्रांस का लंबे समय से चला आ रहा दबदबा कम हो रहा है। विकास सहायता के रूप में हर साल दो अरब डालर तक मिलने के बावजूद नाइजर दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक बना हुआ है, जहां साक्षरता दर केवल ३४ प्रतिशत है। यूरोपियन यूनियन नाइजर के लिए २०२४ में समाप्त होने वाली तीन वर्ष की अवधि के लिए ५० करोड़ ३० लाख यूरो देने वाला था। इतनी मदद के बावजूद नाइजर में अब फ्रांस को युवा वर्ग में बेरोजग़ारी जैसी बड़ी समस्याओं के लिए दोषी ठहराया जाता है।
सन २०२० में माली और बुर्किनो फासो – जो फ्रांस की दासता से सन् १९६० में मुक्त हुए थे – में २०२१ और २०२२ (दो बार) तख्तापलट हुआ था। अब नाइजर ताजा देश है। इन सभी देशों में फ्रांस, बल्कि पूरे पश्चिम, के विरूद्ध नाराजगी लगातार बढ़ती रही, जबकि विरोधी ताकतों जिनमें रूस, तुर्की और चीन शामिल हैं, हालात का फायदा उठाने के मौके तलाशते रहे। बुर्किनो फासो और माली के सैन्य नेतृत्व ने पहले ही चेतावनी दे दी है कि सैन्य हस्तक्षेप के जरिए बजौम को दुबारा सत्ता में लाने का प्रयास जंग का ऐलान माना जाएगा। भाड़े के सैनिकों का रूसी समूह वेगनर नाइजर के पड़ोसी देशों में सक्रिय है और उसने नाइजर के विद्रोहियों को मदद की पेशकश की है।
नाइजर में आगे क्या होगा और नए सत्ताधारी जनरल अब्दुररहमाने चियानी क्या करने वाले हैं यह अस्पष्ट और अनिश्चित है। फ्रांस को आंखे दिखाते हुए और उपनिवेशवादी मानसिकता से उबरते हुए नाइजर में भ्रष्टाचार, मानवाधिकार हनन और अफरा-तफरी का माहौल रहेगा जिसमें जिहादियों और आतंकवाद को पनपने का मौका मिलेगा।
इस तरह यह इलाका युद्ध के मुहाने पर खड़ा है। इकोवास पिछले दरवाजे से कोई समझौता करवाने का प्रयास कर रहा है। लेकिन इस बात की संभावना बहुत कम है कि सैन्य नेतृत्व झुकेगा और सत्ता दुबारा बजौम के हाथ में सौंपेगा। अगर युद्ध हुआ तो वह घातक होगा जिसमें कईयों की भूमिका होगी – नाइजर की सत्ताधारी सेना, जिहादी, पश्चिमी देश, चीन और रूस और इसमें बड़ी संख्या में जानें जायेंगी।