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किसान संगठनों की 13 फरवरी से ‘मार्च टू दिल्ली’ की तैयारी से सकते में सरकार

नई दिल्ली, 10 फरवरी । किसानों की विभिन्न लंबित मांगों को लेकर आगामी लोकसभा चुनावों को प्रभावित करने और केंद्र की मोदी सरकार की सिरदर्दी बढ़ाने की मंशा से एक बार फिर पंजाब और हरियाणा के विभिन्न किसान संगठनों ने राजधानी दिल्ली को केंद्र बनाकर सड़क पर संघर्ष तेज करने की तैयारी कर ली है। इसी के तहत 13 फरवरी से ‘मार्च टू दिल्ली’ अभियान आरंभ करने का ऐलान किया गया है जिसमें देश के विभिन्न हिस्सों से सड़क मार्ग से होते हुए किसानों की फौज राजधानी दिल्ली का घेराव करने के लिए कूच करेगी। पिछले दिनों हरियाणा के हिसार जिला स्थित नारनौंद में हुई संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में ‘मार्च टू दिल्ली’ आरंभ करने का ऐलान किए जाने के साथ ही किसानों से यह आह्वान भी किया गया कि दिल्ली का घेराव करने के लिए आने के क्रम में वह अपने ट्रैक्टर-ट्राॅली में छह महीने का राशन लेकर भी आएं। लोकसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने की अंतिम चरण में चल रही तैयारियों के बीच ‘आर या पार’ की लंबी लड़ाई लड़ने की मंशा से किसान संगठनों की दिल्ली का घेराव करने की तैयारियों को देखते हुए शासन और प्रशासन भी सकते में नजर आ रहा है। हालांकि सरकार की ओर से किसानों को हर संभव मदद और सहायता मुहैया कराए जाने और पूरी संवेदना के साथ उनकी समस्याओं का यथोचित निपटारा किए जाने की बात सरकार की ओर से लगातार कही जा रही है लेकिन किसान संगठनों ने चुनावी गर्मी का लाभ उठाकर निर्णायक हथोड़ा चलाने की रणनीति से पीछे नहीं हटने का ही फैसला किया है। ऐसे में अब एक बार फिर किसान संगठनों द्वारा दिल्ली को उसी प्रकार बंधक बनाए जाने की संभावना दिख रही है जैसा तीन साल पूर्व संसद द्वारा पारित किए गए तीन कृषि विधेयकों को वापस कराने के लिए ऐतिहासिक किसान आंदोलन छेड़ा गया था।
इस बार ‘मार्च टू दिल्ली’ का ऐलान करते हुए किसानों की ओर से 13 सूत्रीय मांग सामने रखी गई जिसमें स्वामीनाथन समिति द्वारा सुझाए गए फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने के फार्मूले को लागू करते हुए एमएसपी की गारंटी का कानून बनाए जाने, किसानों और मजदूरों की पूरी तरह कर्ज माफी, यूपीए सरकार के समय बना भूमि अधिग्रहण कानून लागू किए जाने, लखीमपुर खीरी के किसानों के साथ न्याय किए जाने और सभी वैश्विक कृषि समझौतों को एकतरफा तरीके से समाप्त किए जाने की बात कही गई है। किसान संगठनों के उग्र तेवरों का पहले भी सामना कर चुकी और दबाव के समक्ष झुकते हुए तीनों कृषि कानून वापस लेने के लिए मजबूर हो चुकी सरकार अब एक बार फिर तांडव मचाने के लिए कमर कस चुके किसान संगठनों के तेवरों को देखते हुए सकते में है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक सरकार के समक्ष प्रशासन ने जो रिपोर्ट प्रस्तुत की है उसमें कहा गया है कि अगर किसानों ने दिल्ली घेराव के लिए ‘मार्च टू दिल्ली’ अभियान को आगे बढ़ाया तो सिर्फ परिवहन व्यवस्था ही चैपट नहीं होगी बल्कि सेवाओं और वस्तुओं की आपूर्ति प्रभावित होने से आम लोगों को भीषण महंगाई का सामना भी करना पड़ेगा। खास तौर से अधिकांश दवाओं की निर्माण इकाइयां पंजाब, हिमाचल व उत्तरी राज्यों में होने और इसका अधिकतर वितरण सड़क मार्ग से होने के कारण आपातकालीन दवाओं की आपूर्ति पर भी असर पड़ेगा और ऊर्जा संकट का भी सामना करना पड़ सकता है। साथ ही अर्थव्यवस्था पर भी इसका कितना प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा इसका सहज अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है बीते तीन सालों से विभिन्न आंदोलनों के कारण किसी समय देश की अग्रणी अर्थव्यवस्था वाले राज्य पंजाब की जीएसडीपी राष्ट्रीय औसत से भी कम हो गई है और यह 16 स्थान पर खिसक चुका है।
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