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कड़वे सच का सामना

मशहूर अर्थशास्त्री और नरेंद्र मोदी सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्यण्यम ने भारत के लोगों को अपना दिमाग कबाड़ मुक्त करने की सलाह दी है। उन्होंने आगाह किया है कि भारत एक बड़ा बाजार नहीं है। भारत का घरेलू बाजार इतना बड़ा नहीं है, जिसके बूते भारत का मैनुफैक्चरिंग उद्योग फूल-फल सके। उन्होंने कहा- ‘भारत यह सोच कर बहुत बड़ी गलती कर रहा है कि वह अपने घरेलू बाजार के बूते आगे बढ़ सकता है। मेरी समझ में यह घातक निष्कर्ष है।’
सुब्रह्मण्यम का तात्पर्य यह है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को अगर विकसित होना है, तो ऐसा निर्यात के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ा कर ही किया जा सकता है। पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार ने वर्तमान में बताई जा रही आर्थिक वृद्धि दर पर भी संदेह जताया। हाल में केंद्र सरकार ने बताया था कि इस वित्त वर्ष की पहली और दूसरी तिमाहियों में भारत ने ८ प्रतिशत से भी अधिक ऊंची वृद्धि दर हासिल की।
सुब्रह्मण्यम ने इसे “पूर्णत: रहस्यमय” बताया। कहा- “ईमानदारी के साथ मैं यही कहूंगा कि जीडीपी वृद्धि दर की इस संख्या को मैं समझ नहीं पाया।” कहा कि यह संख्या मुद्रास्फीति की एक से डेढ़ फीसदी दर के आकलन पर आधारित है, जबकि वास्तविक मुद्रास्फीति दर तीन से पांच फीसदी के बीच रही है। एक प्रमुख अर्थशास्त्री का यह सार्वजनिक बयान उन आंकड़ों पर एक गंभीर सवाल है, जिनके आधार पर भारत में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और अगले २३ वर्षों में विकिसत भारत बना देने का नैरेटिव बुना गया है। दरअसल, आर्थिक आंकड़ों की बात करें, तो ऐसी बहुत सी अन्य विसंगतियां सामने हैं।
सचमुच यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आंकड़ों के साथ खिलवाड़ या हेरफेर जरिए ऐसी धारणाएं बनाई गई हैं, जिनका कोई वास्तविक आधार नहीं है। स्पष्टत: ऐसी धारणाओं के जरिए आबादी के एक हिस्से को कुछ समय तक के लिए भटकाए रखा जा सकता है, लेकिन उनके जरिए आम जन की बुनियादी समस्याओं को हल नहीं किया जा सकता। समाधान निकालने की पहली शर्त सच को स्वीकार करना है।

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