श्रुति व्यास
मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फत्ताह अल-सिसी को चुनावों की जल्दी हैं। इसलिए क्योंकि वे जानते हैं कि वे बिना किसी मुकाबले के फिर जीतेंगे। तीसरे कार्यकाल याकि सन् २०३० तक मजे से सत्ता में बने रहने के लिए। सीसी तानाशाह है। वे सन् २०१३ में सैन्य तख्तापलट के जरिए सत्ता पर काबिज हुए थे। उन्होंने देश के पहले लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित राष्ट्रपति मोहम्मद मोरसी को हटाकर सत्ता पर कब्जा किया था।तब जनता में डर का भाव था और सन् २०११ की क्रांति के बाद मध्यम वर्ग स्थिरता की तलाश में था।
इस सबका उन्हें पूरा फायदा मिला। सीसी ने देश में शांति स्थापित करने के लिए काफी खूनखराबा करवाया। उन्होंने देश में आर्थिक समृद्धि लाने और सुनहरे भविष्य का वायदा किया। देश उन पर मंत्रमुग्ध और ‘सीसी का दीवाना’ हो गया, जिसके चलते उन्होंने तख्तापलट के बाद सन् २०१४ में हुए पहले चुनाव में जीत हासिल कर ली – चुनाव में जालसाजी हुई या नहीं यह कहना मुश्किल है। सन् २०१८ में वे दुबारा जीते। उनके खिलाफ केवल एक ‘विपक्षी’ उम्मीदवार था।
दिसंबर में होने वाले अगले चुनाव (जो पहले २०२४ के वसंत में होने थे) में सीसी की जीत की प्रबल संभावना है जिसके बाद वे सन् २०३० तक सत्ता में रह सकेंगे। हालांकि चुनाव मैदान में उनके उतरने का फैसला कुछ दिन पहले ही तब पता लगा जब उनके सहयोगियों ने हजारों लोगों को डाकघरों में भेजकर उनसे सीसी की उम्मीदवारी का समर्थन करवाया (कई लोगों को ऐसा करने के लिए रिश्वत दी गई या बाध्य किया गया)।”जैसे मैंने मिस्र की जनता के आव्हान पर पहले प्रतिक्रिया की थी, आज मैं दुबारा वैसा ही करने जा रहा हूँ।” सीसी ने यह कहकर ऐसा दर्शाने की कोशिश की उनकी इच्छा तो नहीं है, उन्हें पद का लालच तो नहीं है बल्कि देश की जनता, जो उनकी प्रशंसक है, के अनुरोध पर देश की सेवा के लिए राजी हुए हैं।
अपनी घटती लोकप्रियता के बावजूद उन्हें उन मिस्रवासियों का समर्थन अभी भी हासिल है जो उन्हें अपना रक्षक मानते हैं। लेकिन यह सच है कि अब उनकी लोकप्रियता और उनके प्रति दीवानापन २०१३ जैसा नहीं है। उनके तानाशाहीपूर्ण तौर-तरीकों और सत्ता व ऐशोआराम के प्रति आकर्षण, जिसके चलते उन्होंने अरबों की रकम सफेद हाथियों पर खर्च कर दी जैसे उन्होंने रेगिस्तान के बीच एक उजाड़ सी राजधानी बनाई और स्वेज़ नहर, जिससे होने वाली आमदनी उम्मीद से कम थी, को चौड़ा किया। उन्होंने असहमति की सभी आवाजों को बलपूर्वक दबाया, नागरिक समाज संगठनों को समाप्त किया, शासन के विभिन्न अंगों का सैन्यीकरण किया और बार-बार मुद्रा का अवमूल्यन कर मिस्र की जनता को कंगाल बना दिया। इसके साथ ही उनकी नवउदारवादी नीतियों से अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो गई और उस पर सेना के जनरलों का नियंत्रण हो गया।
इसके चलते देश के आर्थिक हालात बहुत खराब हो गए। सन् २०१३ के तख्तापलट के बाद सीसी ने स्थिरता और आर्थिक विकास का वायदा किया था। मगर सन् २०२२ की शुरूआत से वे अब तक तीन बार मुद्रा का अवमूल्यन कर चुके हैं और अब उसका मूल्य आधा रह गया है। मुद्रास्फीति की वार्षिक दर अगस्त में अपने सबसे ऊंचे स्तर ३९.७ प्रतिशत पर पहुंच गई। पिछले एक साल में अनाज की कीमतें ७१.९ प्रतिशत बढ़ चुकी हैं। डालर की कमी के चलते व्यापारियों को आयात के लिए धन की व्यवस्था करने में कठिनाई हो रही है। विदेशी कर्ज सन् २०१३ के जीडीपी के १७ प्रतिशत से दुगना होकर ३९ प्रतिशत हो गया है। आईएमएफ से कज़ऱ् माँगा गया है और ३ अरब डालर दिए जाने के समझौते पर दस्तखत हुए हैं (मिस्र आईएमएफ का दूसरा सबसे बड़ा कर्जदार है)। जल्द चुनाव कराने के पीछे का उद्धेश्य यह है कि सीसी मुद्रा के अवमूल्यन जैसे दु:खदायक आर्थिक फैसले लिए जाने के पहले ही दुबारा सत्ता हासिल कर लें।
यह संभवत: सीसी का अंतिम चुनाव होगा क्योंकि मिस्र के संविधान के अनुसार चौथे कार्यकाल की मनाही है। लेकिन पहले तो तीसरे कार्यकाल पर भी पाबंदी थी। सन् २०१९ में हुए एक दिखावटी जनमत संग्रह के जरिए एक ऐसा रास्ता खोल दिया गया जिसका उपयोग कर उनके लिए एक बार फिर चुनाव में खड़ा होना संभव हो गया। यद्यपि सीसी सत्ता में बने रहेंगे, लेकिन ऐसा लगता है कि उनकी पकड़ कमजोर हो रही है और उनका आत्मविश्वास एक दशक पहले की तुलना में कम हो गया है। इसके पीछे मुख्यत: उनके द्वारा आर्थिक क्षेत्र में की गईं बड़ी गलतियां हैं।