अहंकार भीतर से पैदा होने वाला दूसरा मानसिक रोग है, दुःख है। अहं का अर्थ है मैं जो कुछ हूँ मैं हूँ ऐसा कोई नहीं। जितना मैं बलवान् हूँ, इतना कोई बलवान नहीं जितना मैं सुन्दर हूँ इतना कोई सुन्दर नहीं। मेरे पास बहुत धन और समाज में मेरा ऊँचा रुतबा है। इसीलिए मैं किसी की परवाह क्यों करूँ। यह भावना अभिमान और अहंकार की सूचक हैं।
अभिमानी व्यक्ति केवल अपने आपको जानता है। पहचानता है। दूसरों से विचार विमर्श करने में अपने आपको नीचा समझता है। ऐसे व्यक्ति के ज्ञान में कभी वृद्धि नहीं हो सकती। वह समझता है कि जो कुछ वह सीख चुका है, उससे अधिक और कोई कुछ जानता ही नहीं। वह अपनी गलती न स्वीकार करने की सदैव कोशिश करता है। अभिमानी के साथ सामाजिक सम्बन्ध अधिक समय तक नहीं टिकते हैं।
अभिमान का सर्वनाश निश्चित है। रावण, कंस, दुर्योधन, भुट्टो, सद्दाम हुसैन के उदाहरण हमारे सामने हैं। अहंकार को प्रारम्भिक अवस्था में ही काबू कर लेना चाहिए। बाद में यह बेकाबू हो जाता है।
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