पिछली सर्दियों में शुरू हुआ रूस-यूक्रेन संघर्ष इन सर्दियों में दम तोड़ता सा लग रहा है। पश्चिमी और अन्य देशों का ध्यान अब इजराइल-हमास युद्ध की और मुडा हुआ है। इस युद्ध में धर्म का तड़का लगा है और उसे “आतंकवाद के विरूद्ध लड़ाई” भी बताया जा रहा है। इसके विपरीत, यूक्रेन पर हमले की प्रकृति विचारधारात्मक है। अमेरिका का ध्यान अन्यत्र केन्द्रित होने तथा जो बाइडेन की राजनैतिक स्थिति में गिरावट के बीच यूक्रेन की मदद में अब यूरोपीय संघ (ईयू) का संकल्प भी कमजोर हो गया है। तभी १४ और १५ दिसंबर को आयोजित ईयू के शीतकालीन वर्षांत सम्मेलन को लेकर अनेक संशय हैं। इस वर्ष यूक्रेन को ईयू की सदस्यता और आर्थिक सहायता दी जानी थी। अब दोनों की संभावनाएं कम होती नजर आ रही हैं।
इसकी एक वजह है हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान का एक बार फिर माहौल बिगाडऩे में जुटा होना। ओरबान यह दोहराते रहे हैं कि ईयू को यूक्रेन की सदस्यता से पहले उससे एक रणनीतिक भागीदारी समझौते पर हस्ताक्षर कराना चाहिए। इसलिए क्योंकि यूक्रेन को सदस्यता देने के ईयू पर क्या प्रभाव होंगे, इसका आकलन फिलहाल असंभव है।
जो बात यूक्रेन के खिलाफ जा रही है वह यह है कि युद्ध को लेकर थकावट महसूस की जा रही है या शायद इसकी वजह है एक अन्य युद्ध का शुरू हो जाना। तभी यूरोप ने युद्ध के शुरूआती दिनों में उसको लेकर जिस एकता का प्रदर्शन किया था वह बनी रहेगी। इसमें अब शंका है। और अमरीका का समर्थन लगातार जारी रहेगा इसका भी भरोसा नहीं है। इस सबके बीच व्लादिमीर पुतिन इस घटनाक्रम से खुश हैं। उनका दावा है कि पश्चिम के समर्थन से वंचित यूक्रेन को एक सप्ताह के अंदर कुचल दिया जाएगा।जाहिर है यदि यूरोप सर्वसम्मति से यूक्रेन का साथ देने के संकल्प पर कायम नहीं रहा तो २०२३ एक भयावह स्थिति में समाप्त होगा और २०२४ की शुरूआत ज्यादा अनिश्चितताओं, और ज्यादा खतरनाक परिदृश्यों के बीच होगी।
