लवलेश कुमार
भारत सरकार की यह पहल सही दिशा में है। सरकार ने सहारा समूह की चार सहकारी समितियों में निवेश करने वालों के पैसों को लौटाने के लिए एक नई सेवा शुरू की है। निवेशकों के करीब ३०,००० करोड़ रुपये फंसे हुए हैं। अभी ५,००० करोड़ लौटाने की व्यवस्था हुई है। अगर यह सिर्फ शुरुआत है, तो इसका स्वागत किया जाएगा। यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि यह योजना भी सिर्फ हेडलाइन बटोरने तक सीमित ना रह जाए। सहारा समूह में निवेश करने वाले हजारों लोग पहले ही आशा और निराशा में काफी डूब उतरा चुके हैँ। अब उन्हें वास्तविक राहत देने की जरूरत है। केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह ने इस हफ्ते इस अभियान के लिए एक पोर्टल की शुरुआत की है। सरकार का कहना है कि ‘सीआरसीएस-सहारा रिफंड पोर्टल’ के जरिए उन करोड़ों निवेशकों को उनके पैसे वापस दिलाने की कोशिश की जाएगी जिनके पैसे सहारा समूह में हुए घोटाले के उजागर होने के बाद से फंस हुए हैं। रिफंड पाने के लिए निवेशकों को इस पोर्टल पर जा कर अपने निवेश की, जिस बैंक खाते में रिफंड चाहिए उस खाते की और अपने आधार नंबर की जानकारी देनी होगी।
यह सुनिश्चित करना होगा कि बैंक खाता और मोबाइल नंबर दोनों आधार से जुड़े हुए हों। ये तमाम शर्तें ठीक हैं। मगर असल सवाल है कि सभी निवेशकों के पूरे पैसे को लौटाने की व्यवस्था के बारे में सरकार की पूरी योजना क्या है? इस बारे में सबको भरोसे में लिया जाना चाहिए। वरना, यह एक प्रतीकात्मक कदम बनकर रह जाएगा। यह सुनिश्चत करना होगा कि लोग इस पहल को अगले आम चुनाव से पहले जन भावना को अपने पक्ष में करने की कोशिश ना मानने लगें। खुद अमित शाह ने बताया है कि सहारा समूह की चार समितियों- सहारा क्रेडिट, सहारायान यूनिवर्सल, हमारा इंडिया क्रेडिट और स्टार्स मल्टीपर्पस सहकारी समिति- में करीब १.७८ करोड़ लोगों के लगभग ३०,००० करोड़ रुपये फंसे हुए हैं। लेकिन सारी रकम लौटाने के रास्ते में सुप्रीम कोर्ट का आदेश एक रुकावट है। ऐसे में बेहतर होता केंद्र पहले ऐसी रुकावटों को हटवाने के प्रयास में अपनी ताकत झोंकता।
