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इंडोनेशिया के चुनाव में लोकतंत्र को खतरा?

चौदह फरवरी को दुनिया के तीसरे सबसे बड़े लोकतंत्र इंडोनेशिया में मतदान हुआ। मतदाताओं के रुझान और वोटिंग पैटर्न को देखते हुए माना जा रहा है पूर्व जनरल प्रोबो सुबियांटो अगले राष्ट्रपति होंगे। और उनका मानवाधिकारों के मामले में भयावह रिकार्ड है तो लोकतंत्र में उनकी आस्था को लेकर भी संदेह है। वे देश के दूसरे और सबसे लंबे कार्यकाल वाले राष्ट्रपति सुहार्तो के दामाद भी हैं। बावजूद इसके इंडोनेशिया को नई दिशा देने वाले मौजूदा राष्ट्रपति जोको विडोडो ने उन पर हाथ रखा है। उनके समर्थन से उनकी जीत तय मानी जा रही है?
तो क्या इंडोनेशिया में भी लोकतंत्र खतरें में है? जवाब सुबियांटो के विवादास्पद अतीत में है। वे सेना में दशकों तक प्रभावी रहे। उस दौरान उन पर जनता पर ज़ुल्म करने के आरोप लगे। पूर्व में इंडोनेशिया के कब्ज़े वाले क्षेत्र पूर्वी तिमोर में सेना के विशेष बल के भी प्रमुख थे। तब आरोप लगा था १९९८ में उन्होंने २० से अधिक लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ताओं का अपहरण करवाया। उनमें से १३ अब भी लापता हैं। हालांकि वे हमेशा कहते आए हैं कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है इन इल्जामों के सम्बन्ध में उन पर कोई कानूनी कार्यवाहीं भी नहीं हुई है। लेकिन एक समय इन आरोपों के चलते आस्ट्रेलिया और अमरीका ने उनके वीजा और एंट्री पर पाबंदी लगाई थी।
प्रोबो सभी चुनावी सर्वेक्षणों में आगे हैं। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि मुकाबला त्रिकोणीय है क्योंकि बहुत से मतदाताओं ने यह निर्णय नहीं लिया है कि वे किसे वोट देंगे, लेकिन प्रोबो अन्य उम्मीदवारों की तुलना में बेहतर स्थिति में हैं। इंडोनेशिया में चुनावों का फैसला उम्मीदवारों के व्यक्तित्व के आधार पर होता है जैसा कि २०१४ में हुआ था। तब जोको को लोगों ने एक ताजी हवा के झोंके जैसा माना था। उम्मीद थी वे देश को नयी जिन्दगी देंगे। आज नौ साल बाद वे अर्थव्यवस्था को बेहतर करने में तो सफल हुए हैं लेकिन लोकतंत्र को मजबूत करने में असफल रहे हैं। तभी यह आंशका दमदार है कि १४ फरवरी को इंडोनेशिया में हुए मतदान के बाद सत्ता लोकतंत्र को और कमज़ोर बनाने वाले पूर्व सेनाधिकारी को हाथों में चली जाएगी।

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