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दूरगामी महत्व का सहयोग

यूरेशियन इकॉनमिक यूनियन (यूएईयू) का ब्रिक्स और एससीओ से अंतर्संबंध बनाने के प्रयास के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। बीते मंगलवार को हुए दो दिवसीय यूरेशियन इकॉनमिक फोरम में ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के साथ अंतर्संबंध बनाने पर चर्चा एक प्रमुख एजेंडा रहा। यूरेशियन इकॉनिक फोरम का आयोजन यूएईयू करता है। यह एक मुक्त व्यापार क्षेत्र है, जिसमें रूस, आर्मीनिया, बेलारुस, कज़ाकस्तान और किर्गिज़स्तान शामिल हैं। रूस ब्रिक्स का भी सदस्य है, जिसमें उसके अलावा भारत, चीन, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं। एससीओ में रूस, चीन, भारत के साथ-साथ कजाखस्तान, किर्गिजस्तान, पाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान भी शामिल हैं। ईरान को जल्द ही इसकी पूर्ण सदस्यता मिलने वाली है। जबकि अफगानिस्तान, अजरबैजान, बहरीन और मंगोलिया ने एससीओ की पूर्ण सदस्यता पाने की इच्छा जताई है। इनके अलावा १४ देश एससीओ के डायलॉग पार्टनर हैं, जिनमें सऊदी अरब, तुर्किये, कतर, संयुक्त अरब अमीरात और मिस्र भी शामिल हैँ।
अगर धरती के भूगोल पर गौर करें, तो ये तमाम देश उसके बहुत बड़े हिस्से पर मौजूद नजर आएंगे। जनसंख्या के लिहाज से तो उनका वर्चस्व ही नजर आएगा।
इन संगठनों के सदस्यों का इस समय विश्व जीडीपी में हिस्सा ३० प्रतिशत से ज्यादा है। साल २०३५ तक इसमें सिर्फ ब्रिक्स का हिस्सा ५० प्रतिशत तक पहुंच जाएगा। अगर ईएईयू की यह पहल कामयाब रही, तो उससे दुनिया में नया शक्ति संतुलन कायम करने की दिशा में हो रहे प्रयासों को एक बड़ा बल मिलेगा। मास्को बैठक में तीनों संगठनों के सदस्य देशों के बीच मौद्रिक और वित्तीय सहयोग की संभावनाओं को भी एजेंडे में रखा गया है। मकसद है आपसी व्यापार में भुगतान की नई व्यवस्था बनाने की दिशा में बढऩा। यानी अंतरराष्ट्रीय कारोबार में अमेरिकी मुद्रा डॉलर के वर्चस्व को तोडऩा। जाहिर है, ऐसी कोशिशों के दूरगामी परिणाम होंगे। इस बीच ब्रिक्स के विस्तार की चर्चा भी अब जोर पकड़ती जा रही है। जून के पहले हफ्ते में दक्षिण अफ्रीका में होने वाली ब्रिक्स विदेश मंत्रियों की बैठक में इसकी कोई ठोस तस्वीर उभर सकती है। कई नए देशों को ब्रिक्स की सदस्यता मिल सकती है। ऐसा हुआ, तो यह अपने-आप में एक बड़ा घटनाक्रम होगा।

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