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गठबंधन या सत्ता पाने की मजबूरी

– वीरेंद्र प्रताप सिंह

विपक्ष के समूह ‘इंडी’ की बैठक से यही संकेत मिले कि इन दलों के बीच नरेंद्र मोदी को सत्ता से बाहर करने के अलावा कोई किसी और साझा उद्देश्य पर सहमति नहीं है। इसलिए बैठक से प्रमुख खबर यही उभरी कि अगले तीन हफ्तों में इस समूह में शामिल २८ पार्टियां विभिन्न राज्यों में लोकसभा सीटों के बंटवारे पर अंतिम फैसला कर लेंगी। इसके अलावा थोक भाव में विपक्षी सांसदों के निलंबन के मुद्दे पर विरोध दिवस मनाने और कुछ साझा रैलियां करने का निर्णय हुआ।
संभवत: कुछ नेताओं ने प्रधानमंत्री पद के चेहरे के लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े का नाम प्रस्तावित किया, लेकिन उस पर सहमति नहीं बनी। वैसे भी यह साफ नहीं है कि यह प्रस्ताव सचमुच दिल से दिया गया, या इसके पीछे किसी अन्य नेता को काटने की चाल थी।
बहरहाल, जो बात सिरे से गायब रही, वह कोई साझा न्यूनतम कार्यक्रम है। इन समूह की अर्थनीति या विकास नीति किस रूप में मोदी सरकार से अलग होगी, उस पर अब तक इन दलों ने विचार करने की जरूरत नहीं समझी है। ऐसे में यह सारा प्रयास सीटों के तालमेल तक सिमटता दिख रहा है।
मकसद यह है कि भाजपा विरोधी वोटों को बंटने से रोका जाए, ताकि अगले आम चुनाव में भाजपा को सीटों की संख्या के लिहाज से अधिकतम नुकसान पहुंचाया जा सके।
गणना संभवत: यह है कि अगर २०१९ की तुलना में भाजपा की ६०-७० सीटें घटाई जा सकें, तो फिर कुछ ऐसे नए राजनीतिक समीकरण बन सकते हैं, जिनसे नरेंद्र मोदी और अमित शाह को सत्ता से हटाया जा सकेगा- या कम-से-कम सत्ता पर उनकी पकड़ ढीली हो सकेगी। अगर महत्त्वाकांक्षा इतनी कमजोर नहीं होती, तो ये दल अपने भावी शासन के स्वरूप और कार्ययोजना पर विचार करते। तब उनकी रणनीति मतदाताओं में ऐसा उत्साह पैदा करने की होती, जिससे इंडिया को सकारात्मक जनादेश प्राप्त हो सके।
लेकिन अभी सारा एजेंडा मोदी सरकार की “तानाशाही” का मुद्दा सामने रखकर जनादेश प्राप्त करने तक सीमित है। अब समय इतना कम है कि इस एजेंडे में बदलाव की गुंजाइश कम ही रह गई है।

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