बांग्लादेश में दो प्रभावशाली महिलाओं का टकराव जारी है -शेख हसीना और बीएनपी की नेता ७७ वर्षीय खालिदा जिया जो देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री हैं। दोनों महिलाओं ने अपने नजदीकी लोगों को तख्तापलट और हत्याकांडों में खोया, और तबसे सत्ता हासिल करने की इन दोनों की लड़ाई के इर्दगिर्द ही बांग्लादेश का लोकतंत्र सिमट गया है। शेख हसीना का दावा है कि जिया के राज की वजह से ही देश में सैन्य तानाशाही आई, वहीं बीएनपी के नेताओं का कहना है कि उन्होंने ही देश में बहुदलीय लोकतंत्र को फिर से स्थापित किया जबकि हसीना के पिता ने देश में एक दलीय प्रणाली लागू करने की घोषणा कर दी थी।
इस सारी तू-तू मैं-मैं और जैसे को तैसा के बीच राजनैतिक उथल-पुथल के कारण बांग्लादेश की विकास यात्रा में रूकावट आ रही है।
महामारी और यूक्रेन-रूस युद्ध के कारण टेक्सटाइल उद्योग और विदेशों में काम कर रहे बांग्लादेशियां द्वारा भेजे जाने वाले पैसे पर काफी हद तक निर्भर बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था डावांडोल है। ईधन और खाद्यान्न के आयात पर होने वाला खर्च बढ़ता जा रहा है। देश में विदेशी मुद्रा की कमी होती जा रही है, जिसके चलते इस साल जनवरी में बांग्लादेश को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से ४.७ अरब डालर का कर्ज़ लेना पड़ा। यदि शेख हसीना स्वतंत्र चुनाव होने देती हैं तो भी शायद वे जीत जाएं क्योंकि विपक्ष बहुत कमजोर हो गया है। लेकिन वे यह खतरा मोल नहीं लेंगीं क्योंकि उन्हें नहीं लगता कि मनमानी करने में कोई समस्या है। जहां तक पश्चिमी देशों और अन्यों का सवाल है, उनमें से अधिकांश उनके दमनकारी रवैये पर चुप्पी साधे हुए हैं। इसका एक कारण तो यह है की चीन उन्हें साधने की जुगत में है। लेकिन यदि मोहम्मद युनुस – जिन्हें पश्चिम संत का दर्जा देता है – को गिरफ्तार किया जाता है तो पूरी दुनिया में उनकी थू-थू होना तय है। फिलहाल बांग्लादेश का लोकतंत्र छिन्न-भिन्न है। वह तेजी से आगे बढ़ रहा था। मगर अब उसकी दिशा पलट गई है और वह किसिंजर की भविष्यवाणी के अनुसार ‘बास्केट केस’ बनने की ओर अग्रसर है।
