आखिरकार, लंबी चली जद्दोजहद के बाद भारत में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के नियम अधिसूचित कर दिए हैं। इस कानून का मुख्य लक्ष्य धार्मिंक आधार पर प्रताडितों (हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई), जिन्हें पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से पलायन को मजबूर होना पड़ा है, को भारत में नागरिकता प्रदान करना है।
पहले भी इन तीनों देशों के मुसलमानों को भारतीय नागरिकता दी जा चुकी है। जाहिर है कि यह कानून किसी धर्म या संप्रदाय के आधार पर भेदभाव से नहीं जुड़ा है। साफ है, यह कानून किसी की नागरिकता छीनने का नहीं, बल्कि देने का कानून है। यह विधेयक मूल रूप में १९५५ के नागरिकता विधेयक में ही कुछ परिवर्तन करके अस्तित्व में लाया गया है। १९५५ में यह कानून देश में दुखद विभाजन के कारण बनाया गया था। इस समय बड़ी संख्या में अलग-अलग धर्मो के लोग पाकिस्तान से भारत आए थे। इनमें हिन्दू, सिख. जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई थे।
छब्बीस सितम्बर, १९४७ को एक प्रार्थना सभा में महात्मा गांधी ने कहा था, ‘पाकिस्तान में जो हिन्दू एवं सिख प्रताड़ित किए जा रहे हैं, उनकी मदद हम करेंगे।’
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री रहते हुए सदन में कहा था कि यदि पाकिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिंक अल्पसंख्यक प्रताड़ित किए जा रहे हैं और वे पलायन को मजबूर हुए हैं, तो उन्हें भारतीय नागरिकता दी जानी चाहिए।
बहरहाल, यह कानून मानवीयता के सरोकारों से जुड़ा अहम कानून है, जिसे दुनिया को मिसाल के रूप में देखना चाहिए।
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