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चीन की गिरती आर्थिक सेहत

चीन का आंतरिक अर्थतंत्र कमजोर हो रहा है। परिवार नियोजन के सख्त कानून से चीन की जनसंख्या अब घटने की स्थिति में आ गई है। बच्चों और जवानों की संख्या में कमी और बूढ़ों की आबादी में बढ़ोतरी हो रही है। १६-२४ वर्ष की उम्र के २० फीसद से अधिक नौजवान बेरोजगार हैं। वृद्धावस्था की पेंशन और समाज कल्याण पर सरकार का खर्च तेजी से बढ़ रहा है। श्रम की कमी हो रही है और उसकी कीमत बढ़ रही है। चीनी वस्तुओं की कीमत कम होने का एक बड़ा कारण सस्ता श्रम रहा है जो अब समाप्त हो रहा है, चीजों की उत्पादन लागत बढ़ रही है। चीन की सबसे बड़ी कंपनी अलीबाबा ने खर्चे में कटौती के तहत १०० कर्मचारियों की छंटनी कर दी है। कंपनी की आय पिछले वर्ष की अपेक्षा ५० फीसद कम हुई है। विश्व की बड़ी कंपनी वर्कशार हैथवे, जिसके मालिक वारेन बफे हैं, के वाइस प्रेसिडेंट चार्शी मंगल ने अलीबाबा के शेयर भारी मात्रा में बेच दिए हैं, जिससे निवेश बाजार में चीन के खिलाफ संदेश गया है।
बाजार में मंदी होने से चीन का निर्यात तेजी से घटा है, पिछले १ साल में उसमें १४ फीसद की गिरावट आई है। अमेरिका यूरोप और एशिया के केंद्रीय बैंकों द्वारा मुद्रास्फीति पर नियंत्रण के लिए ब्याज दरों में बढ़ोतरी के चलते वैश्विक मांग कमजोर पड़ गई है जिसका चीनी निर्यातकों पर बुरा असर पड़ा है। कल कारखाने पूरी क्षमता में काम नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि वस्तुओं की मांग आंतरिक और विदेशी बाजार, दोनों में गिरती जा रही है। विकास दर पिछले साल के ८ फीसद से इस वर्ष के अनुमानित पांच फीसद के लक्ष्य से भी नीचे है। खुदरा व्यापार पिछले वर्ष की तुलना में ४.५ फीसद से २.५फीसद पर, औद्योगिक उत्पादन ४.४ फीसद से ३.७ फीसद पर आ गया है, मैन्युफैक्चरिंग पीएमआई ५० फीसद से नीचे आ चुका है, जो औद्योगिक उत्पादन की गति में गिरावट की स्थिति दिखाती है। अंतरराष्ट्रीय कंपनियां चीन में अपना निवेश कम कर रही हैं, दूसरे विकासशील देशों में अधिक निवेश कर रही हैं, जो चीन की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रही है। खाने की वस्तुएं और ईधन के दाम आसमान छू रहे हैं।
चीन का प्रॉपर्टी बाजार संकट में है। पिछले २ वर्षो में रिहायशी फ्लैट्स की कीमतों में तेजी से गिरावट आई है, कमर्शियल फ्लोर स्पेस की कीमत में २२फीसद से अधिक गिरावट दर्ज की गई है, कमर्शियल बिल्डिंग्स से राजस्व में २६ फीसद से अधिक की कमी आई है। चीन की अर्थव्यवस्था का आकार १७ बिलियन डॉलर का है, जिसका एक चौथाई प्रॉपर्टी सेक्टर से आता है। २०२० में चीन ने घरों की बढ़ती कीमतों को रोकने के लिए डवलपर्स द्वारा अधिक ऋण लेने पर लगाम लगा दिया था जिसके फलस्वरूप प्रॉपर्टी बाजार में अस्थिरता आ गई जो अभी बनी हुई है। डॉलर के मुकाबले चीनी मुद्रा की कीमत बराबर नीचे आ रही है। चीन अपने आप को सबसे ताकतवर देश भले समझता हो किंतु जमीनी हकीकत कुछ और ही है। चीन के सरकारी आंकड़ों की विसनीयता पर भी घेरे में है।
विदेशी निवेश के आकषर्ण के लिहाज से अब भारत चीन से आगे निकल चुका है। निवेश प्रबंधन फर्म इन्वेस्को की हालिया रिपोर्ट के अनुसार २१,००० अरब डॉलर की संपत्ति रखने वाले ५७ केंद्रीय बैंकों एवं ८५ सरकारी संपत्ति कोषों के एक सर्वेक्षण में सर्वाधिक उभरते बाजार के रूप में चीन की बजाय भारत को चुना गया है। चीन की विस्तारवादी नीति और ताइवान पर उसके हमले की आशंका को लेकर भी विदेशी निवेशक चीन में निवेश करने से कतरा रहे हैं। अनेक अंतरराष्ट्रीय कंपनियां चीन में अपना कारोबार समेट कर भारत में कारखाने लगा रही हैं। पर्यटन परामर्श कंपनी आईपीसी इंटरनेशनल के अनुसार २०२२ में भारत पहली बार एशिया में अंतरराष्ट्रीय यात्रियों का सबसे बड़ा स्रोत बन गया है। भारत दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा शेयर मार्केट बन गया है। पिछले एक दशक में भारत र्वल्ड इकनोमी में दसवें से पांचवें स्थान पर आ गया है। अगले कुछ वर्षो में जर्मनी-जापान को पीछे छोड़कर तीसरे स्थान पर आ जाएगा। गोल्डमैन सैक्स के अनुसार २०७५ तक भारत चीन के बाद विश्व की दूसरी सबसे बड़ी ५२.५ ट्रिलियन डॉलर की इकनोमी बन जाएगी।

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