बाइडेन को दोनों तरफ से हमलों का सामना करना पड़ रहा है। लोकलुभावन नीतियों के पैरोकार ट्रंप-समर्थक दक्षिणपंथी, यूक्रेन को आर्थिक सहायता दिए जाने में बाधाएं खड़ी कर रहे हैं क्योंकि उन्हें उम्मीद है कि सहायता बंद होने पर पुतिन की जीत हो जाएगी जिसके नतीजे में निरंकुश शासकों का आत्मविश्वास बढ़ेगा और लोकतंत्र के लिए खतरे पैदा होंगे। साथ ही गाजा में युद्ध विराम के आव्हान से दुनिया में एक ज्यादा बड़ी समस्या उत्पन्न हो जाएगी। इससे हमास की जीत होगी और गाजा पर उसका पूर्ण नियंत्रण कायम हो सकता है जो न सिर्फ मध्यपूर्व बल्कि पूरे विश्व के लिए बड़ा खतरा होगा। इससे हमास वह हासिल कर लेगा जो आईएसआईएस नहीं कर सका था अर्थात भयावह आतंकी हमला करने के बाद भी एक संगठन के रूप में बचे रहना, वह भी एक ऐसी सेना के सामने जो उसे मिट्टी में मिलाने की क्षमता रखती है।
दूसरी ओर इजराइल जिस पैमाने पर हमले कर रहा है उसे औचित्यपूर्ण ठहराना भी मुश्किल है। इसलिए सभ्य, मानवीय दृष्टिकोण वाले लोगों के लिए इन मौतों और विनाश को देखकर इन निर्दोषों की दुर्गति पर आक्रोशित न होना असंभव है। यदि बाइडन गाजा संकट को संभालने में सफल हो जाते हैं – रणनीतिक और मानवीय दोनों दृष्टियों से – तो यह अमेरिका, मध्यपूर्व और सारी दुनिया के लिए शुभ होगा।
इसके अलावा चीन का मसला भी है जो दुनिया के घटनाक्रम पर नजऱें गड़ाए हुए है और बहुत सोच-समझकर बनाकर अपने मोहरे आगे बढ़ा रहा है।
सो एक तरफ कुआं एक तरफ खाई वाली स्थिति है। गंभीर चुनौतियां हैं, त्रासदियों के भंवर है, भ्रम के धुंध है और एक भी गलत कदम की कीमत चुकानी पड़ सकती है। लेकिन जो बाइडेन को नेता की भूमिका निभानी ही होगी। अमरीका के लिए यह इम्तहान की घड़ी है। इम्तेहान इस बात का है कि वह एक अत्यधिक जटिल और खतरों भरी दुनिया से पटरी बिठा पाता है या नहीं।
