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बाइडेन की वियतनाम यात्रा

बाइडेन ऐसे पांचवे अमरीकी राष्ट्रपति हैं जो एक समय अमरीका के प्रबल शत्रु रहे वियतनाम गए हैं। जो बीत गया उसे भुलाना अमेरिका के लिए जरूरी है ताकि आज की चिंता को दूर हो सके। और आज की चिंता क्या है? चीन की एशिया-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ती महत्वाकांक्षाएं।
नि:संदेह अमेरिका की तुलना में वियतनाम की कही ज्यादा समानता, याराना रूस और चीन से है। वह चीन की छत्रछाया में समृद्ध हुआ है। युद्ध के बाद अलग-थलग पड़े वियतनाम के इंफ्रास्ट्रक्तर के पुनर्निर्माण, सड़कें और जलमार्ग तैयार करने और कृषि के क्षेत्र में विकास में चीन ने बहुत मदद की। यही कारण है कि कुछ साल पहले तक बहुत से वियतनामी चीन को अमेरिका की तुलना में अपने ज्यादा निकट पाते थे। लेकिन अब वियतनाम आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से काफी विकसित है। साथ ही वह रणनीतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण बन गया है। ऐसा माना जाता है कि ताईवान के बाद संभवत: वियतनाम ही वह देश है जिसे मार्क्सवाद से दूर हटते चीन से सबसे ज्यादा खतरा है। बीजिंग लगभग पूरे दक्षिण चीन सागर पर अपनी सार्वभौमिकता का दावा करता है, जिनमें वियतनाम के नियंत्रण वाले वे द्वीप भी शामिल हैं जिन्हें वियतनाम अपना मानता है। इसके साथ ही वियतनाम के लगभग पूरे एक्सक्लूसिव इकनोमिक जोन पर चीन की नजऱ है। इससे वियतनाम के मछुआरों और ऑफशोर गैस व तेल उत्पादन क्षेत्रों के साथ-साथ ही उसकी आजादी और भूमि को भी खतरा है। यही कारण है कि वियतनाम को अमेरिका से रिश्ते बेहतर करने की जरूरत महसूस हो रही है।
लगभग एक दशक से दोनों देशों के संबंधों को व्यापक साझेदारी कहकर परिभाषित किया जाता रहा है। लेकिन जो बाइडेन तथा वियतनाम की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव गुयेन फुन ट्रिंग की मुलाकात के साथ दोनों देश द्विपक्षीय संबंधों को वियतनाम के सर्वोच्च कूटनीतिक पायदान पर पहुंचा बतला रहे है। यह दर्जा अभी तक केवल चीन, रूस, भारत व दक्षिण कोरिया के साथ था। अब अमेरिका को भी वियतनाम ने अपना “व्यापक रणनीतिक साझेदार” घोषित किया है। जाहिर है यह दोनों देशों के लिए फायदे का सौदा है।

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