श्रुति व्यास
अमेरिका कुछ समय पहले तक इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से नाराज़ था। इसकी वजहें भी साफ थीं। जबसे नेतन्याहू सत्ता में आए हैं (उन्होंने आखिरी बार २०२२ में चुनाव जीता था) तब से उनके देश में अराजकता का माहौल है – संवैधानिक और सामाजिक तौर पर और फिलिस्तीन मुद्दे सभी को लेकर।
तभी इजराइल के सबसे नजदीकी दोस्त होने के नाते अमेरिका की नेतन्याहू से नाराजग़ी जायज़ थी।बाइडन ने फरवरी में ही साफ कर दिया था कि नेतन्याहू सरकार के प्रस्तावित न्यायिक सुधार, उन साझा मूल्यों से मेल नहीं खाते जो इजराइल और अमरीका की दोस्ती के आधार हैं।फिर समय के साथ यह साफ़ भी होता गया कि नेतन्याहू न्यायिक सुधारों के नाम पर इजराइल में कार्यपालिका की जो दादागिरी बनवा रहे है उससे अमेरिका व पश्चिमी देशों में वे खलनायक होते जा रहे है। इसलिए सुधारों को ठंडे बस्ते में डालेंगे तभी वे व्हाईट हाउस जा पाएंगे। मार्च में बाइडन ने कहा था कि “आने वाले कुछ दिनों” में नेतन्याहू की यात्रा नहीं होने वाली है। पिछले हफ्ते जब उनसे पूछा गया कि क्या वे नेतन्याहू को आमंत्रित करने वाले हैं, तब कुछ देर आगा-पीछा करने के बाद उन्होंने इजराइल के राष्ट्रपति इसाक हर्जोग, जिन्हें उनके देश में केवल रस्मी दर्जा हासिल है, के व्हाइट हाउस आने का हवाला दिया और कहा कि “वहां हमारे दूसरे कांटेक्ट भी हैं”।हाल में उन्होंने नेतन्याहू सरकार के अतिवादी मंत्रियों के खिलाफ आग उगलते हुए कहा था कि अपने दशकों के राजनीतिक जीवन में उन्होंने जितनी सरकारें देखीं हैं उनमें से यह “सबसे उग्रपंथियों में से एक” है।, जाहिर है नेतन्याहू और राजनीति की उनकी शैली दोनों से राष्ट्रपति बाइडननाराज़ और परेशान हैं।
परन्तु शायद बाडइन को एक (मोदी) को आमंत्रित करने और दूसरे (नेतन्याहू) की उपेक्षा करने पर आलोचना का सामना करना पड़ा हो और इसलिए एक आश्चर्यजनक घटनाक्रम में उन्होने सोमवार (१६ जुलाई) को बीबी (नेतन्याहू) से टेलीफोन पर बात की। और उन्हें निकट भविष्य में बातचीत के लिए अमेरिका आने के लिए आमंत्रित किया। व्हाईट हाउस के अनुसार सोमवार को टेलीफोन पर उन्हीं मुद्दों पर चर्चा हुई जिन्हें व्हाईट हाउस ने हर्जोग से बातचीत के एजेंडा में रखा है।
बाइडन और हर्जोग के बीच उन उपायों पर चर्चा प्रस्तावित है जिनसे इजरायलियों और फिलस्तीनियों को ज्यादा आज़ादी और सुरक्षा हासिल हो सके, ईरान के ”अस्थिरता उत्पन्न करने वाले रवैये” से निपटा जा सके और “इजराइल को दुनिया के उस क्षेत्र, जिसमें वह है, से बेहतर ढंग से जोड़ा जा सके”।
इसमें कोई संदेह नहीं कि बाइडन को ऐसे नेताओं के साथ काम करना पड़ रहा है जिनका मिजाज उनके जैसा नहीं है। नेतन्याहू के बारे में उनकी बहुचर्चित राय से यह एकदम साफ़ है: ”बीबी तुम जो कह रहे हो उससे मैं जरा भी सहमत नहीं हूं लेकिन मैं तुम्हें पसंद करता हूं”।
लेकिन कूटनीतिक स्तर पर इजराइल को झिड़कने वाला रवैया कभी ने कभी तो खत्म होना ही था। इजराइल अमेरिका का बहुत ख़ास दोस्त है और दोस्त की आंतरिक समस्याएं चाहे जो भी हों, अमरीका उनमें दखलअंदाजी करके अपनी वैश्विक राजनीति को खतरे में नहीं डाल सकता। आखिरकार बहुत से गंभीर मामलों में उसे इजराइल के सहयोग की जरूरत है खासतौर से ईरान के मामले में। इसके अलावा इजराइल और सऊदी अरब के संबंध सामान्य बनाने के समझौते और इजराइल-फिलिस्तीन में टकराव को काबू में रखने के मसले भी हैं।
अगर फिलिस्तीन का मसला गर्म बना रहता है तो इजराइल और सउदी अरब के संबंध सामान्य कैसे हो पाएंगे? इजराइल के प्रधानमंत्रियों के प्रति बाइडन का रवैया यही रहा है कि उन्हें सहा जाए। लेकिन नेतन्याहू के अँधेरे में घिरते जाने से उन्होंने अपना रुख कुछ कड़ा कर लिया था। आखिरकार बाइडन को घरेलू राजनीति का ख्याल भी रखना है। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और फ्लोरिडा के गर्वनर रोन डेसांटिस सहित रिपब्लिकन पार्टी के नेता बीबी को निमंत्रित न करने के लिए सरकार की आलोचना कर रहे हैं। वहीं इजराइल में जो कुछ हो रहा है उसके मद्देनजर उनकी अपनी डेमोक्रेटिक पार्टी के कई नेता कांग्रेस में हर्जोग के भाषण का बहिष्कार करने का मन बना रहे हैं।
अब जब कि नेतन्याहू को निमंत्रित कर दिया गया है – और शायद वे पतझड़ में अमेरिका जाएंगे – उम्मीद है कि दोनों नेता विवाद के मुद्दे सुलझा लेंगे। परन्तु इस मुलाकात में कितनी गर्मजोशी रहेगी, यह इस पर निर्भर करेगा कि नेतन्याहू की अति-दक्षिणपंथी सरकार संवैधानिक संकट से उपजे जन असंतोष से कैसे निपटती है।