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बेरोजगारी का यह आलम

भारत में मीडिया की सुर्खियों ने आबादी के बड़े हिस्से को सुखबोध से ओत-प्रोत कर रखा है। ऐसा सोचने वाले लोगों की कमी नहीं है कि जल्द ही भारत आर्थिक महाशक्ति बन जाएगा। बल्कि कहा तो यह भी जाता है कि ऐसा हो भी चुका है। मगर यह हवाई नैरेटिव है, जो जमीनी सूरत से ध्यान हटाते हुए गढ़ा गया है।
जमीनी सूरत क्या है, इसकी खबरें भी अक्सर आती हैं, लेकिन वे अखबारों में कहीं अंदर के पन्नों पर दब जाती हैं। मसलन, इस ताजा खबर पर गौर कीजिए: दिल्ली के चिडिय़ाघर में १०० लोगों को नौकरी पर रखा गया है। उनमें लगभग सभी के पास ऊंची डिग्रियां हैं। ये अंग्रेजी, गणित, अर्थशास्त्र, भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र, मेटलर्जी आदि जैसे विषयों में ग्रैजुएट, पोस्ट-ग्रैजुएट और इंजीनियरिंग जैसी डिग्रियां हासिल कर चुके नौजवान हैं। उन्हें जू-कीपर की नौकरी मिली है। जू-कीपरों का काम चिडिय़ाघर के पशुओं का हर तरह से ख्याल रखना होता है। इस नौकरी के लिए बारहवीं पास होने की योग्यता काफी है। इस नौकरी में १८,००० से २२,००० रुपये तक का मासिक वेतन मिलता है।

ऊंची योग्यता वाले युवाओं का ऐसे पद पर नौकरी करना- जिसके लिए वे जरूरत से ज्यादा योग्य हैं- स्पष्टत: देश में बेरोजगारी की भीषण हालत का संकेत है। वैसे आंकड़े भी इस बात की पुष्टि करते हैं। पीरिऑडिक लेबर फोर्स सर्वे के ताजा आंकड़ों के मुताबिक २०२२-२३ में देश में ग्रेजुएट युवाओं के बीच बेरोजगारी दर १३.४ प्रतिशत थी। लेकिन यह आंकड़ा भी पूरा सच नहीं बताता। मसलन, अब अपनी योग्यता से निम्नतर नौकरी पा जाने उपरोक्त १०० युवा भी बेरोजगारी की श्रेणी से बाहर हो गए हैँ। ऐसी हालत लाखों नौजवानों की है। फिर सरकारी परिभाषा में अर्ध या अस्थायी रोजगार में लगे लोगों को बेरोजगार नहीं माना जाता है।

विश्व बैंक ने २०२२ में कहा था कि भारत में १५-२४ साल के युवाओं में बेरोजगारी दर २५ प्रतिशत के आसपास है। अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की- स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया २०२३- नामक रिपोर्ट के मुताबिक २०२१-२२ में २५ साल से कम उम्र के ग्रैजुएट युवाओं में ४२ प्रतिशत बेरोजगार थे। ये आंकड़े हकीकत से ज्यादा मेल खाते हैं।

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