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विश्वास है, भक्त अंध हैं! – हरिशंकर व्यास

 

अंतरिम बजट पर टीवी चैनल-मीडिया का नैरेटिव समय की सच्चाई है। मतलब सरकार आत्मविश्वास में है। और आगामी लोकसभा चुनाव में सरकार की वापसी है इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लोक लुभावन घोषणाओं की जरूरत नहीं लगी। अंतरिम बजट में न ठोस नीतिगत घोषणाएं है और न आंकड़ों की सच्चाई का खुलासा। और बावजूद इसके मोदी की महिलाओं, युवाओं, किसानों व गरीबों की चार जात की बात से चुनाव में चार सौ सीटें पक्की!
निश्चित ही अयोध्या में राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा से प्रधानमंत्री मोदी अब चुनाव चिंता में नहीं हैं। इसलिए क्योंकि रामजी आ गए हैं। हिंदू राममय है और रामराज्य है ही। सो २५ करोड़ लोगों की गरीबी दूर हो गई। महिलाएं लखपति, नौजवान ब्याज मुक्त कर्ज से रोजगार के सपने देखते हुए हैं। आर्थिकी ‘रिफॉर्म, परफॉर्म और ट्रांसफॉर्म’ के मोड में हैं तो इसके फंडामेंटल से ग्रोथ का इंजन प्रोपेल हो कर चंद्रयान की तरह भाग रहा है। देवलोक से पुष्प बरस रहे हैं और बहुत जल्दी भारत के १४० करोड़ ‘विकसित’ लोग अमेरिकी लोगों की तरह स्पेसक्राफ्ट में घूमा करेंगे और ब्रह्मांड यात्रा से मंगल, शनि जैसे ग्रहों की बुरी नजर को दुरूस्त किया करेंगे।
हां, मोदी है तो सब मुमकिन है। गुरूवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण भाषण नहीं पढ़ रही थीं। उनकी वाणी से मोदीजी का आशीर्वाद प्रसारित था। तभी उन्होंने अपने भाषण में ४२ बार प्रधानमंत्री को याद किया। और टीवी चैनल २०२४ के अंतरिम बजट का भाष्य करते हुए भविष्यवाणी करते हुए थे कि मोदी अबकी बार ४०० के पार!
बहुत अच्छा! पर सवाल है ४०० पार ही क्यों? (आखिर इतना तो राजीव गांधी का ही रिकॉर्ड है और वह भी लोगों की बिना अंधभक्ति के) जब रामजी, रामराज्य भारत की सरजमीं पर साकार है तो सभी ५४२ सीटों की जीत से क्यों नहीं तीसरी बार राजतिलक होना चाहिए? नरेंद्र मोदी और भक्त लोग क्यों लोकसभा की सभी सीटों पर जीत से संकोच कर रहे हैं? यदि कोई दिक्कत हो तो ईवीएम मशीन से मनचाहे परिणाम निकालने का दावा करने वाले दिल्ली के जंतर-मंतर पर जमावड़ा लगाते विशेषज्ञों की सेवा ले सकते हैं। उन्हें पटाना, डराना, समझाना, खरीदना भला क्या मुश्किल!
कोई न माने मेरी यह बात या इसे मेरा व्यंग्य समझे लेकिन मैं चाहता हूं कि आजाद भारत के इतिहास में जितना जल्दी संभव हो वह सब हो जाना चाहिए जो पंद्रह सौ सालों के इतिहास में लगातार हुआ है। ताकि पचास साल बाद की हिंदू बुद्धि में यह सत्य अंतत: घुसे कि भक्ति, अंधभक्ति, कथित अवतारों, झूठ और मूर्खताओं से न आजादी सुरक्षित रहती है और न राम तथा रामराज्य की दिव्यता बनती है। मतलब नरेंद्र मोदी का मौजूदा वक्त पचास साल बाद यह सबक बनाए हुए हो कि एक व्यक्ति विशेष की ऊंगली पर कौम की किस्मत, उसकी अंध भक्ति और अवतारों का झूठ अंतत: गुलामी और कलियुग को न्योता है। संभवतया तब हिंदू विवेकशील बने और बुद्धि में सियासी चैतन्यता घुसे।
विषयांतर हो गया है। असल बात अगले लोकसभा चुनाव में मोदी का आत्मविश्वास बोलता हुआ होगा। मैं लंबे समय से भक्त हिंदुओं में नरेंद्र मोदी की अवतार रूप में प्राण प्रतिष्ठा होते बूझ रहा हूं। और बहुत लिखा भी है। लेकिन अब वे अंध भक्तों में पूरी तरह स्थापित हैं। रामजी आ गए हैं। तभी उनके डायलॉग भी बदलते हुए हैं। वही उन्हें अंतरिम बजट में लोक लुभावन घोषणाओं की जरूरत नहीं लगी। इसलिए क्योंकि अब हवा है कि उनका चेहरा, मोदी का नाम गारंटी है (मानों ईश्वर की)। चेहरा और नाम ही भक्तों के लिए बहुत है। जब भगवान साक्षात हैं और उनके श्रीमुख से स्वर्गलोक (कथित विकसित भारत) की गारंटी है तो अंधविश्वासी मतदाता अपने आप उन्हें जिताएंगे। वोट का चढ़ावा चढ़ाएंगे।
आश्चर्य नहीं जो पिछले दिनों नरेंद्र मोदी का एक जनसभा में कहना था- मोदी चुनाव का नहीं विकास का बिगुल फूंकता है। बिगुल फूंकने की मोदी को न पहले जरूरत थी, न आज जरूरत है और न आगे जरूरत है।
सही है भगवान को भला कुछ भी करने की क्या जरूरत? फिर हिंदू भक्तों के तो कहने ही क्या! वे तो हमेशा विश्वासी, आस्थावान रहे हैं अपने अवतारी राजा के सामर्थ्य में। सो, इक्कीसवीं सदी में क्यों न हो? इसलिए एक मायने में जरूरी है पच्चीस-पचास साल हिंदू अंधे होकर अपना सर्वस्व राजा को सुपुर्द किए रहें और उन्हे सम सामयिक इतिहास से ही ज्ञात हो जाए कि अवतारी राजा का कौम के लिए अंत परिणाम वैसा होता है या नहीं जैसा पहले बार-बार हुआ है!

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