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स्वतंत्रता पर प्रहार मानव अधिकारों का हनन

– डॉ. केशव पाण्डेय

स्वतंत्रता के साथ जीवन यापन करना हर एक इंसान का अधिकार है। यदि इस पर किसी प्रकार का कुठाराघात होता तो वह मानव अधिकारों का हनन है। मानवाधिकार देश और दुनिया में प्रत्येक नागरिक को स्वतंत्र रूप से सोचने, विवेक और धर्म की स्वतंत्रता के साथ ही ईमानदार विश्वासों का निर्माण करने का अधिकार देता है। इसके तहत व्यक्ति अपनी पसंद के अनुरूप किसी भी धर्म का पालन करने और अपनी इच्छानुसार बदलने के लिए स्वतंत्र है। ये मानव के वे अधिकार हैं जो विश्वव्यापी हैं और वैश्विक कानूनों द्वारा संरक्षित हैं। बदलते वक्त के साथ ही इसमें भी बदलाव आया है। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस पर जानते हैं इसका महत्व।
१० दिसंबर को दुनियाभर में मानव अधिकार दिवस मनाया जाता है। जो शांति, समानता, न्याय, स्वतंत्रता और मानव गरिमा की सुरक्षा को बढ़ावा देता है। १९४८ में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा को अपनाया था। अपनी प्रस्तावना में यूडीएचआर ने “अंतर्निहित गरिमा की मान्यता और मानव परिवार के सभी सदस्यों के समान अधिकारों की मान्यता पर प्रकाश डाला है, जो दुनिया में स्वतंत्रता, न्याय और शांति की नींव है।” १९५० में दिवस की आधिकारिक घोषणा की गई। २८ सितंबर १९९३ को भारत में अमल में लाया गया। इसी के तहत १२ अक्टूबर १९९३ को मानव अधिकार आयोग गठित हुआ।
मानव अधिकार का आशय ऐसे अधिकारों से है- जो जाति, लिंग, राष्ट्रीयता, भाषा, धर्म या किसी अन्य आधार पर भेदभाव किये बिना सभी को प्राप्त होते हैं। सार्वभौमिकता के तहत अधिकारों और स्वतंत्रताओं से संबंधित कुल ३० अनुच्छेदों को सम्मिलित किया गया है। जिसमें जीवन, स्वतंत्रता और गोपनीयता जैसे नागरिक और राजनीतिक अधिकार तथा सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं शिक्षा जैस आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार शामिल हैं। भारत ने मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा के प्रारूपण में सक्रिय भूमिका निभाई है।
कन्वेंशन ऑन द प्रिवेंशन एंड पनिशमेंट ऑफ द क्राइम ऑफ जेनोसाइड (वर्ष १९४८)। इंटरनेशनल कन्वेंशन ऑन द एलिमिनेशन ऑफ ऑल फॉर्म ऑफ रेसियल डिस्क्रिमिनेशन (वर्ष १९६५)। डिस्क्रिमिनेशन अगेंसट् विमेन (वर्ष १९८९)। विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर कन्वेंशन (वर्ष २००६)। भारत इन सभी कान्वेंशन्स का हिस्सा है।
मानवाधिकार परिषद् संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर एक अंतर-सरकारी निकाय है, जो मानव अधिकारों के संवर्द्धन और संरक्षण के प्रतिबद्ध है। यह संयुक्त राष्ट्र के ४७ सदस्य देशों से मिलकर बनी है, जिनका चयन संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा किया जाता है।
प्रत्येक चार वर्ष में एक बार संयुक्त राष्ट्र के सभी १९२ सदस्य देशों के मानवाधिकार रिकॉर्ड की समीक्षा की जाती है। क्यांकि मानव अधिकार वे मानदंड हैं जो मानव व्यवहार के मानकों को स्पष्ट करते हैं। एक इंसान होने के नाते ये वो मौलिक अधिकार हैं जिनका प्रत्येक व्यक्ति स्वाभाविक रूप से हकदार है।
मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा में उल्लेखित लगभग सभी अधिकारों को भारतीय संविधान में दो हिस्सों-मौलिक अधिकार और राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांत में शामिल हैं। मौलिक अधिकार-संविधान के अनुच्छेद १२ से ३५ तक। इसमें समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, सांस्कृतिक और शिक्षा संबंधी अधिकार तथा संवैधानिक उपचारों का अधिकार शामिल है।
मानवाधिकारों के संबंध में “नेल्सन मंडेला” ने कहा था, कि लोगों को उनके मानवाधिकारों से वंचित करना उनकी मानवता को चुनौती देना है। स्वतंत्रता पर प्रहार ही मानव अधिकारों का हनन है।
विडंबना देखिए कि कानून द्वारा संरक्षित इन अधिकारों में से कई लोगों द्वारा, यहां तक कि सरकारों और कानून के रक्षकों द्वारा भी उल्लंघन किया जाता है। मानवाधिकारों के उल्लंघन की निगरानी के लिए कई संगठन बनाए गए हैं। ये संगठन इन अधिकारों की सुरक्षा के लिए कदम उठाते हैं। लेकिन कई बार ऐसा देखने को मिलता है कि जिन लोगो के ऊपर मानव अधिकारों की रक्षा की जिम्मेदारी होती है वही अपनी शक्ति का दुरूपयोग कर मानव अधिकारों का हनन करने लगते हैं। इसीलिए इस बात को सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि देश के सभी व्यक्तियों को उनके मानव अधिकारों की प्राप्ति हो। ताकि वे शांति, समानता, गरिमा, न्याय और पूर्ण स्वतंत्रता के साथ जीवन यापन कर सकें।

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