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अंतकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्‌। यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः ॥

अंतकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्‌।
यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः ॥

भावार्थ : श्रीकृष्ण जी कहते हैं कि जो पुरुष अंतकाल में भी मुझको ही स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग कर जाता है, वह मेरे साक्षात स्वरूप को प्राप्त होता है- इसमें कुछ भी संशय नहीं है।

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