पाकिस्तान के पेशावर में मस्जिद में हुए हमले में ६० से ज्यादा लोगों की मौत ने दशक भर पहले के उस दौर की याद ताजा करा दी है, जब पाकिस्तान में ऐसे हमले आम हो गए थे। हाल में हमलों का सिलसिला फिर तेज हो गया है, लेकिन आम लोगों को इतने बड़े पैमाने पर पहली बार निशाना बनाया गया है। पेशावर में हमला किसने किया, इसकी आधिकारिक जानकारी के लिए हमें इंतजार करना होगा। पहला शक आतंकवादी गुट तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) पर गया है। लेकिन हाल में आई खबरों को ध्यान में रखें, तो आम लोगों को निशाना बनाना इस गुट की नई रणनीति से मेल नहीं खाता। इन खबरों के मुताबिक टीटीपी ने पाकिस्तान को निशाना बनाने की एक नई विस्तृत रणनीति अपना ली है। इसके संकेत हाल इस आतंकवादी संगठन के बयानों से मिले हैं। खबरों में बताया जाता है कि इस रणनीति को टीटीपी के मौजूदा प्रमुख मौलवी नूर वली मेहसूद ने तैयार किया है। टीटीपी को अफगान तालिबान का समर्थन हासिल है। इसलिए वह अपनी रणनीति को अधिक आक्रामक ढंग से अंजाम दे रहा है। इस रणनीति के तहत टीटीपी पाकिस्तानी समाज में अधिक पैठ बनाने में जुटा हुआ है। वह वहां खुद को इस्लाम के अग्रिम दस्ते के रूप में पेश कर रहा है। इस रणनीति के तहत वह मुस्लिम बहुल इस देश में लोगों की धार्मिक भावनाओं का पूरा लाभ उठाने की कोशिश कर रहा है। मसलन, कुछ समय पहले टीटीपी प्रमुख नूर वली मेहसूद ने तुर्किये एक मीडिया संस्थान को इंटरव्यू दिया था। उसमें उसने कहा था कि टीटीपी के मुजाहिदीन इस्लामी राष्ट्र पाकिस्तान की संतान हैं। उसने दावा किया कि पाकिस्तान सरकार चाहे जितनी कार्रवाइयां कर ले, इस इस्लामी समाज में मुजाहिदीन के प्रभाव को वह खत्म नहीं कर सकती। कुछ खबरों में यह भी बताया गया है कि टीटीपी अब खुद को एक राजनीतिक ताकत के रूप में उभारने की कोशिश में जुट गया है। उसके नेता यह दावा भी कर रहे हैं कि टीटीपी लोगों को मौजूदा राजनीतिक प्रणाली से मुक्ति दिलाने के दावे कर रहे हैँ। इसी बीच पेशावर में हमला हुआ है, तो कई सवाल उठ खड़े हुए हैं।
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