हाल में चीन में आबादी में गिरावट एक बड़ी खबर बनी। लेकिन ऐसी समस्या से सिर्फ चीन ही नहीं जूझ रहा है। बल्कि इससे वैसे तमाम देशों को जूझना पड़ रहा है, जिन्होंने विकास का एक खास स्तर हासिल कर लिया है। देखा यह गया है कि जब समाज में विकास के साथ महिलाएं सशक्त होती हैं और निर्णय लेने में स्वतंत्र हो जाती हैं, तो वहां जन्म दर में गिरावट आने लगती है। वैसे भी समृद्ध और सक्षम परिवार अधिक बच्चों के साथ नहीं जीना चाहते। लेकिन जन्म दर गिरने के कारण आबादी घटने लगती है, जिससे अर्थव्यवस्था और सामाजिक ताना-बाना बिगडऩे लगता है। यही स्थित जापान में पैदा हुई है। खुद जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने चेतावनी दी है कि देश में जन्म दर घटने के कारण सामाजिक गतिविधियों को जारी रखना कठिन होता जा रहा है। देश की संसद में उन्होंने एलान किया कि उनकी सरकार अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहन को एक महत्त्वपूर्ण नीति के रूप में अपनाने जा रही है।
इसके पहले हाल में यह खबर आई थी कि देश में पिछले साल बच्चों के जन्म लेने की संख्या में भारी गिरावट आई। पिछले साल जापान में आठ लाख से भी कम बच्चों ने जन्म लिया, जो एक रिकॉर्ड है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक इस वर्ष एक जनवरी को जापान की आबादी १२ करोड़ ४७ लाख ७० हजार थी। यह एक जनवरी २०२२ की आबादी की तुलना में ०.४३ प्रतिशत कम है। जापान की वर्तमान आबादी में ६५ साल से अधिक उम्र के लोगों की संख्या २९ वर्ष है। जबकि शून्य से १४ वर्ष उम्र के बच्चों की संख्या सिर्फ ११.६ फीसदी है। इस तरह अनुमान है कि आने वाले वर्षों में जापान की आबादी में और गिरावट आएगी। इस वर्ष जारी हुए आंकड़ों ने देश के नीति निर्माताओं में गहरी चिंता पैदा की है। विशेषज्ञों के मुताबिक जनसंख्या के ताजा ट्रेंड का मतलब है कि जापान में श्रमिकों की संख्या घटेगी, जबकि सामाजिक सुरक्षा प्राप्त करने वाले बुजुर्ग लोगों की संख्या बढ़ रही है। तो अब सरकार ने आबादी बढ़ाने की नीति अपनाई है। लेकिन क्या कारगर होगी, यह सवाल बना हुआ है।
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