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Is this an effective solution?

ये कारगर उपाय है?

भारत सरकार कश्मीर में हजारों ग्रामीणों को हथियारबंद करने की योजना पर फिर अमल कर रही है। एक बार इन लोगों को हथियारबंद कर अपने-अपने इलाकों की सुरक्षा का जिम्मा सौंपा गया था। तब ये उपाय कारगर साबित नहीं हुआ। अब हाल में घाटी में सात नागरिकों की हत्या के बाद यह कदम उठाया जा रहा है। इस महीने की शुरुआत में घाटी में सात आम नागरिकों की हत्या कर दी गई। उसके बाद बताया गया कि अधिकारियों ने आम लोगों के एक सुरक्षा नेटवर्क को दोबारा खड़ा करने का फैसला किया है। इसके तहत लगभग २६ हजार ग्रामीणों में विलेज डिफेंस गार्ड्स (वीडीजी) को फिर से सक्रिय कर दिया है, जो बीते कुछ सालों में निष्क्रिय हो गया था। इस बार कई लोगों को ऑटोमेटिक राइफलें भी दी जा रही हैं। ये योजना कितनी कारगर होगी, यह तो बाद में जाहिर होगा। लेकिन सीमावर्ती जिलों में स्थानीय लोगों के हाथों में हथियार देने का कदम सरकार के उस दावे को गलत साबित करता है कि इलाके में हालात सामान्य हैं। यह स्थिति कश्मीर से संबंधित धारा ३७० खत्म करने साढ़े तीन साल बाद की है।
गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर के राजौरी में उग्रवादियों ने एक जनवरी को हमला किया था। इस घटना में हिंदू समुदाय के चार लोगों की मौत हो गई थी और सात घायल हो गए थे। गोलीबारी अलग-अलग तीन घरों पर की गई थी। पिछले साल घाटी में रहने वाले हिंदू परिवारों पर लगातार हमले होते रहे। दिसंबर में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने राज्यसभा में बताया था कि २०२० से २०२२ के बीच तीन साल में नौ कश्मीरी पंडितों की मौत हुई थी। मरने वालों में कई ऐसे कश्मीरी पंडित थे, जो प्रधानमंत्री विकास पैकेज के तहत घाटी में काम कर रहे ५६ कर्मचारियों में शामिल थे। प्रधानमंत्री विकास पैकेज के तहत इन ५६ कश्मीरी पंडितों को घाटी में बसाया गया और वहां काम दिया गया। यह भारत सरकार की उन कश्मीरी पंडित परिवारों को वापस लाने की कोशिशों का हिस्सा है, जो १९९० के दशक में आतंकवाद के डर से राज्य छोड़कर चले गए थे। वह डर आज भी कायम है। क्या ताजा उपाय से इससे मुक्ति मिलेगी?

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