अरविंद केजरीवाल को इलहाम हुआ। जैसाकि उन्होंने बताया कि जब वे दिवाली के दिन लक्ष्मी-गणेश की पूजा कर रहे थे, तभी ये विचार उनके दिमाग में कौंधा। इस तरह उन्हें भारत को समृद्ध बनाने का फॉर्मूला मिल गया। फॉर्मूला यह है कि अगर भारत की मुद्रा रुपये पर लक्ष्मी-गणेश की तस्वीरें छापी जाएं, तो भारत एक समृद्ध देश बन जाएगा। उनके तर्क पर गौर कीजिए। केजरीवाल ने कहा कि व्यापारी इसीलिए धनी होते हैं, क्योंकि वे लक्ष्मी-गणेश के फोटो लगा कर रखते हैँ। सरल बात है कि जब इस कारण व्यापारी धनी हो सकते हैं, तो पूरा देश क्यों नहीं! तो अब केजरीवाल ने केंद्र से गुजारिश कर दी है कि वह जल्द से जल्द इस बारे में फैसला ले।
बहरहाल, ये फॉर्मूला देश को समृद्ध बनाएगा या नहीं, यह दीगर प्रश्न है। इससे केजरीवाल को (कम से कम उन्हें तो यह लगता ही है) अपनी उच्चवर्णीय हिंदू छवि पेश कर इस मोर्चे पर भाजपा का मुकाबला करने का एक औजार जरूर मिलेगा।
इस तरह हाल में उनकी सरकार के एक दलित मंत्री के डॉ. अबेंडकर की हिंदू धर्म का प्रतित्याग करने संबंधित प्रतिज्ञाएं दोहराने से उनकी पार्टी के सामने जो मुसीबत आई, उससे कुछ मुक्ति मिलेगी। गौरतलब है कि उस मंत्री के उन प्रतिज्ञाओं को दोहराने की खबर को भाजपा ने बड़ा मुद्दा बनाया। जिस समय गुजरात में विधानसभा चुनाव की बिसात सज चुकी है, केजरीवाल को अपने लिए यह नुकसान का सौदा लगा। इसलिए तुरत-फुरत उन्होंने उस मंत्री की छुट्टी कर दी। अब उन्होंने आगे बढ़ कर भाजपा को घेरने की चाल चली है। यह इस बात का संकेत है कि भारत इस समय किस मुकाम पर पहुंच गया है? जो नेता चर्चा में हैं, उनके पास देश को सचमुच समृद्ध बनाने का कोई गंभीर सुझाव नहीं है। उनमें इस बात की होड़ छिड़ी हुई है कि कौन अंधकार का कितना साया फैला सकता है, जिससे जनता को और कुछ ना दिखे।
केजरीवाल का उदय कथित नई राजनीति शुरू करने का वादा करते हुए हुआ था। तब उन्हें अहसास हो गया कि अगर अंधकार का साया ठीक से फैलाया जाए, तो अच्छे-अच्छे अपनी दृष्टि खो देते हैं। अब वे उसी फॉर्मूले को आगे बढ़ा रहे हैं।



