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मर्ज़ बढ़ता ही गया, ज्यों-ज्यों दवा की

भारत और चीन के बीच व्यापार में ये पंक्तियां हर रोज ज्यादा सच होती जा रही हैं कि मर्ज बढ़ता ही गया, ज्यों-ज्यों दवा की। पिछले ढाई साल से स्थिति यह है कि भारत चीन पर आर्थिक नकेल कसने की कोशिश में है। मगर हर महीने जब आयात-निर्यात के आंकड़े आते हैं, तो उलटी कहानी नजर आती है। २०२१ के पूरे साल में दोनों देशों का कारोबार १२६ बिलियन डॉलर तक पहुंच गया था। इसमें उतनी चिंता की बात नहीं होती, अगर आयात-निर्यात में संतुलन नजर आता। मगर कहानी यह थी कि भारत ने सिर्फ लगभग २७ बिलियन डॉलर का निर्यात किया, जबकि लगभग ९९ बिलियन डॉलर का यहां आयात हुआ। बीच में ये खबर आई थी कि अब अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापार साझीदार बन गया है। लेकिन अब जारी हुए अगस्त के आंकड़ों के मुताबिक यह दर्जा फिर चीन ने हासिल कर लिया है। मगर चिंता की बात फिर से व्यापार असंतुलन है। गौर कीजिए: पिछले महीने दोनों देशों के बीच ११.४९ बिलियन डॉलर का कारोबार हुआ।
उसमें भारत से निर्यात सिर्फ १.२६ बिलियन डॉलर है, जबकि भारत ने चीन से १०.२३ बिलियन डॉलर का आयात किया। जाहिर है, व्यापार घाटा लगभग १० बिलियन डॉलर का रहा। कुछ विशेषज्ञों ने इसका कारण यह बताया है कि भारत में अर्थव्यवस्था गति पकड़ रही है, इसलिए आयातित चीजों की मांग बढ़ी है। मगर इससे ये सवाल उठेगा कि भारतीय कारोबार जगत के सहयोगी उद्योग देश में विकसित क्यों नहीं हो रहे हैं? स्वस्थ औद्योगिक ढांचा वह होता है, जिसमें इनपुट सामग्रियों की सप्लाई का चेन भी आसपास बनता जाता है। उससे रोजगार के अवसरों और समृद्धि का विस्तार होता है। वरना, अगर कुछ बड़े उद्योग चीन से सामग्रियां मंगवा कर मुनाफा कमा रहे हैं, तो यह देश की आम खुशहाली का मॉडल नहीं हो सकता। फिर ये प्रश्न भी है कि अगर अर्थव्यवस्था गति पकड़ रही है, तो उसी अनुपात में भारत से निर्यात क्यों नहीं बढ़ रहे हैं? इसलिए इस समस्या का सरलीकृत उत्तर देने की कोशिश नहीं की जाना चाहिए। बल्कि आखिर इसका क्या समाधान है, इस सवाल पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।

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