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ग़रीब ही ग़रीब की बात करेगा तो संसद क्या करेगी?

भारतीय जनता पार्टी के नेता किसी भी गंभीर बहस को भटकाने और उसे दूसरा स्वरूप दे देने में माहिर हैं। जैसे राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में उठाए जा रहे मुद्दों की बजाय भाजपा उनके रात्रि विश्राम के लिए लगाए गए कंटेनर और उनके कपड़े का मुद्दा बना रही है। पहले भाजपा ने कंटेनर का मुद्दा बनाया और उनके कथित ४१ हजार रुपए के टी शर्ट का मुद्दा बनाया। भारत का मीडिया भी ऐसी बुरी दशा में पहुंच चुका है कि शुक्रवार को पूरे दिन इस पर बहस होती रही और भाजपा के सबसे बेहतरीन प्रवक्ताओं को बहस में बैठाया गया ताकि वे राहुल पर हमला कर सकें और यह सवाल उठा सकें कि राहुल ४१ हजार की टी शर्ट पहन कर कैसे गरीब की बात कर सकते हैं। जवाब में कांग्रेस नेताओं ने प्रधानमंत्री के १० लाख के सूट, सवा लाख की घड़ी और एक लाख से ज्यादा के चश्मे की बात उठाई।
लेकिन कायदे से यह पूरी बहस फालतू की है क्योंकि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई नेता क्या पहनता है, कैसी गाड़ी से चलता है या क्या खाता-पीता है। अगर इस आधार पर आंकलन किया जाएगा तो सबसे पहले देश की संसद ही सवालों के घेरे में आएगी। भारत की संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित आधे से ज्यादा सांसद करोड़पति हैं। संसद की कार्यवाही देखने जाइए तो दिखेगा कि ज्यादातर सांसद लाखों-करोड़ों रुपए की गाडिय़ों में बैठ कर आते हैं, सबके हाथों में महंगे फोन और महंगी घडिय़ां दिखेंगी और सब महंगे कपड़े पहने होते हैं। लेकिन वहीं करोड़पति सांसद देश के भाग्य विधाता हैं। देश के १४० करोड़ लोगों की किस्मत का फैसला करते हैं। वहीं करोड़पति सांसद पांच किलो अनाज पर पलने वाले भूखे-नंगे भारतीयों की किस्मत का फैसला भी करते हैं। अगर यह पैमाना बन जाए कि गरीब ही गरीब की बात करेगा तो भारतीय संसद गरीब की बात ही नहीं कर पाएगी!

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