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नीतीश अब भाजपा को मौका नहीं देंगे

बिहार की राजनीति में कई दिनों से जारी राजनीतिक उठापटक के बाद आखिरकार नीतीश कुमार ने आठवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर साबित कर दिया कि जोड़-तोड़ तथा उठापटक की राजनीति में उनका सानी कोई नहीं है।
बिहार में विधानसभा चुनाव के पहले तथा प्रचार के दौरान जिस राजद तथा लालू परिवार को वह दिन रात पानी पीकर कोसते थे आज उसी से गलबहियां करते हुए उन्हें कोई संकोच अथवा शर्म महसूस नहीं हो रही है। आखिर उन्हें यूं ही राजनीति में पलटूराम की उपाधि नहीं मिली है।
किंतु यह स्पष्ट है कि उन्होंने भाजपा को यहां जोरदार पटखनी देते हुए अपनी कलाकारी का एहसास करा दिया है। भाजपा के जिन चुनावी दांव पेंच में फंस कर महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के धुरंधर धूल चाट गए उन्हें नीतीश कुमार ने अपने धोबी पाट से चारों खाने चित कर दिया।
अब नितीश कुमार की पार्टी के नेता भाजपा को निशाना बनाने में लगे हुए हैं। जनता दल यू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में निशाना तो अपनी पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह को बनाया लेकिन उनका असली निशाना भाजपा पर था। उन्होंने नाम नहीं लिया लेकिन कहा कि समय आने पर खुलासा करेंगे कि नीतीश कुमार के खिलाफ कहां-कहां और कैसे कैसे साजिश रची गई। उन्होंने चिराग पासवान मॉडल का जिक्र किया और यह भी कहा कि उसे दोहराने की कोशिश हो रही थी। उनकी इस बात का निशाना भी भाजपा पर था।
असल में ललन सिंह कोई नई बात नहीं कह रहे हैं। यह बात २०२० के विधानसभा चुनाव के तुरंत बाद हुई जदयू की पहली बैठक में जीते हुए विधायकों और हारे हुए उम्मीदवारों ने कही थी। उन्होंने कहा था कि भाजपा की मदद से चिराग पासवान चुनाव लड़े और उन्होंने जदयू उम्मीदवारों को हराया। तब नीतीश कुमार और उनकी पार्टी के बड़े नेताओं ने कहा था कि वे सब जानते हैं और समय आने पर इसका हिसाब होगा। सो, ऐसा लग रहा है कि अब वह समय आ गया है। वह समय इसलिए आया क्योंकि नीतीश कुमार का गला दबाने के लिए चिराग मॉडल को दूसरी बार आजमाया गया।
पहली बार चिराग पासवान के जरिए नीतीश का गला दबाया गया। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा की ११० सीटों को छोड़ कर चिराग ने हर सीट पर उम्मीदवार उतारा। ध्यान रहे भाजपा के कोर वोट बैंक का एक हिस्सा कभी भी नीतीश को वोट नहीं करता है। तभी साथ लडऩे पर भी हमेशा भाजपा का स्ट्राइक रेट जदयू से बेहतर होता है। २०२० के चुनाव में भाजपा ने अपना कोर वोट चिराग की ओर शिफ्ट कराया। वह तो नीतीश के चेहरे का जादू या उनकी पुण्यता और इकबाल था कि इसके बावजूद उनकी पार्टी ४३ सीट जीत गई और उनके बिना किसी की सरकार नहीं बनने की स्थिति बन गई।
दूसरी बार नीतीश का गला आरसीपी सिंह को मंत्री बना कर दबाया गया। सबको पता है कि नीतीश नहीं चाहते थे कि उनका एक सांसद मंत्री बने। वे तीन मंत्री पद चाहते थे। इसके बावजूद भाजपा ने आरसीपी सिंह को केंद्र में मंत्री बनाया। जानकार सूत्रों के मुताबिक भाजपा की योजना आरसीपी सिंह के जरिए जनता दल यू को तोडऩे की थी। वे बिहार में एकनाथ शिंदे बनने वाले थे। लेकिन नीतीश कुमार अलर्ट थे और उन्होंने आरसीपी के पर कतर दिए। तीसरा प्रयास यह हो रहा था कि नीतीश को मजबूर किया जाए कि वे २०२४ के लोकसभा चुनाव के साथ बिहार विधानसभा का चुनाव कराएं और नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा जाए। तभी नीतीश के करीबी नेताओं का कहना है कि दो बार भाजपा ने उनका गला दबाने का प्रयास किया और किसी तरह से नीतीश बचे। सो, अब तीसरी बार वे अपना गला दबाने का मौका भाजपा को नहीं देंगे।
इसी की परिणति आखिरकार भाजपा और जदयू के गठबंधन टूटने पर जाकर हुई। बहरहाल अब नीतीश कुमार राजद के साथ मिलकर आठवें मुख्यमंत्री के रूप में अपनी नई पारी शुरू कर रहे हैं। अब देखते हैं कि २०२४ के लोकसभा चुनावों के पहले बिहार की राजनीति का ऊंट कब और किस करवट बैठता है।

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