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शी जिनपिंग की माओत्से बनने की महत्वाकांक्षा की भारी कीमत चुकाएगा चीन -अशोक मिश्र

साम्यवादी देश चीन ने हालिया वर्षो में जिस तरह से तरक्की की वो दुनिया के लिए मिसाल है। दुनिया का कोई ऐसा देश नही होगी जिसकी फैक्ट्री चीन में न हो। जबसे शी जिनपिंग सत्ता में आये हैं तबसे ,चीन विश्व का दादा बनने में लगा हुआ है ,कोरोना महामारी ने जिस तरह से चीन को दुनिया के सामने वस्त्र विहीन किया उससे चीन की साख पूरी दुनिया मे खलनायक की बन गई है । अभी तक चीन अपने मंसूबे को जमीन पर लाने में कामयाब नहीं हो सका तो उसके पीछे महामारी से उपजा अविश्वास ही है,दक्षिण अफ्रीका,श्री लंका,और ऐसे बहुत से छोटे छोटे देश जो चीन के कर्ज जाल में फंस गए आज वो चीन के उपनिवेश बनने की ओर अग्रसर हैं। हॉन्गकॉन्ग डेली के अनुसार शी जिनपिंग के आने के बाद से चीन में अत्याचार बढ़ गया है,संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में ये खुलासा हुआ है कि चीन के ६ लाख से अधिक लोगों ने दूसरे देशों से शरण मांगी है।बच्चों के विडियो गेम खेलने के घंटे तय कर दिए गए हैं।अलीबाबा,दीदी,व टेनसेंट जैसी कंपनियों के खिलाफ जांच बैठा दी गई हैं। विडियो गेम के घंटे तय होने से टेक कंपनियों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। १४ देशों से सीमा साझा करने वाले चीन का लगभग सभी देशों से सीमा विवाद है।
चीन ने चौधरी बनने के चक्कर मे पूरी दुनिया से पंगा ले लिया है,चीन के पक्ष में सकारात्मक चीज केवल इतनी हैं कि रूस अभी भी अपने चिर प्रतिद्वंदी अमेरिका के कारण चीन के साथ खड़ा हुआ है। पाकिस्तान लगभग चीन की कालोनी बन चुका है और उसके होने न होने के कोई बहुत मायने नहीं हैं । बंगला देश के साथ भले ही चीन का व्यापारिक असंतुलन हो फिर भी भारत व चीन के मामले में बंगला देश मन से चीन के साथ ही रहेगा जोकि डोकलाम संकट के समय देखा गया था । भारत के रक्षा घेरे में होने के कारण बांग्लादेश को किसी तरह का कोई खतरा नहीं।चीन की विस्तारवादी नीति के चलते ताइवान, फिलीपीन्स, जापान,भारत लगभग सभी पड़ोसी देश परेशान हैं व चीन को रोकने के लिए हल तलाश कर रहे हैं। ताजा विवाद में अमेरिकी प्रतिनिधि के ताइवान जाने के बाद क्षेत्र में युद्ध जैसे हालात को जन्म दिया है। अमेरिका भले ही ताइवान व दक्षिण कोरिया के साथ खड़ा दिखता है पर युद्ध जैसे हालातों में अमेरिका इन देशों की कितनी मदद करेगा ये भविष्य के गर्त में है। चीन दुनिया के सबसे बड़ी आबादी का प्रतिनिधित्व करता हैं वहीं दूसरी ओर ताइवान २ करोड़ ४५ लाख आबादी वाला देश हैं। चीन ताइवान के सैन्य असंतुलन का आलम ये हैं कि चीनी सेना ताइवान से १४ गुना बड़ी ,व रक्षा बजट १२ गुना बड़ा हैं। इस असंतुलन को ताइवान अच्छे से समझता है। सैन्य अभ्यास के नाम पर चीन ने ताइवान को पूरी तरह घेर रखा हैं जिससे ताइवान के लोग गुस्से में हैं। तकनीकी दक्षता के चलते इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद व सेमी कंडक्टर,चिप का ज्यादातर निर्यात इसी क्षेत्र से होता है। चीन के सैन्य अभ्यास से बहुत सारे पोतों को लंगर डालना पड़ा व हवाई गतिविधियां भी प्रभावित हुई हैं। शी जिनपिंग की चौधरी बनने की चाहत की कीमत चीन सहित कई देश चुकाएंगे। कालांतर में चीन का युद्ध को लेकर बहुत अच्छा अनुभव नहीं है ,फिलीपीन्स,रूस,व भारत से हुई झड़पों से चीन को अपनी औकात पता चल गई है । चीन में लंबित श्रम सुधार व तानाशाही ने चीनी लोगों का जीना हराम कर रखा है। चीन युद्ध के रास्ते पर तो नहीं जाएगा, पर पाकिस्तान व उत्तर कोरिया के माध्यम से भारत,अमेरिका ,ताइवान को चुनौती देता रहेगा। चीन अगर खुद युद्ध में जाता है तो उसके लिए आत्मघाती कदम होगा।
(लेखक पत्रकार हैं)

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