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सावधानी हटी तो बात गई!

अब जबकि दुनिया का ध्यान कोरोना से हट गया है, तो इसमें कोई हैरत की बात नहीं है कि  कोरोना वैक्सीन को पेटेंट मुक्त करने की वार्ता के नाकाम होने के कगार पर पहुंच जाने की ख़बर आ रही है।

जब दुनिया में कोरोना महामारी के कारण कोहराम मचा था, तब कोरोना वैक्सीन को पेटेंट मुक्त कराने का मुद्दा दुनिया के एजेंडे पर सबसे ऊपर था। दबाव यहां तक बना कि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी इस मांग का समर्थन कर दिया। हालांकि दवा कंपनियां और यूरोपीय देश तब भी उससे सहमत नहीं थे। वे उस माहौल में भी इनसान की जान पर मुनाफे को तरजीह देने की तोहमत अपने माथे पर लेने को तैयार थे। अब जबकि दुनिया का ध्यान कोरोना से हट गया है, तो इसमें कोई हैरत की बात नहीं है कि  कोरोना वैक्सीन को पेटेंट मुक्त करने की वार्ता के नाकाम होने के कगार पर पहुंच जाने की खबर आ रही है। गौरतलब है कि अगर इन वैक्सीन को पेटेंट मुक्त कर दिया जाए, तो उनका विकासशील देशों में सस्ती दर पर उत्पादन करने का रास्ता खुल जाएगा।

फिलहाल दुनिया में कोरोना महामारी काबू में है। लेकिन विशेषज्ञों ने चेतावनी दे रखी है कि अभी आश्वस्त होने का समय नहीं आया है। फिर बात सिर्फ इस महामारी की नहीं है। अगर इस बार एक मिसाल कायम होती, तो भविष्य की महामारियों से रोकथाम का एक मॉडल भी तैयार होता। लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है। एक अंतरराष्ट्रीय वेबसाइट ने खबर दी है कि वैक्सीन को पेटेंट मुक्त करने की वार्ता में कई अड़ेंगे डाल दिए गए हैं। अब संभव है कि ये वार्ता टूट जाए। बातचीत विश्व व्यापार संगठन (डब्लूटीओ) की देखरेख में चली है। वार्ता मुख्य रूप से चार पक्षों- यूरोपियन यूनियन (ईयू), अमेरिका, भारत, और दक्षिण अफ्रीका के बीच हो रही है। लेकिन इसके आगे बढऩे की संभावना काफी घट गई है। कुछ दिन पहले डब्लूटीओ की महानिदेशक न्गोजी ओकोंजो-इवीला ने कहा कि अब जरूरत से अधिक उत्पादन हो रहा है। इसलिए हमारे सामने समस्या वितरण की दिक्कतों और वैक्सीन लगवाने को लेकर जारी अनिच्छा की है। इन सबको दूर करने की जरूरत है। इसे वार्ता के उलझ जाने का संकेत समझा गया। जबकि गैर-सरकारी संगठनों के मुताबिक अब दवा उद्योग वैक्सीन उत्पादन में निवेश घटाने की तैयारी में है। उससे फिर वैक्सीन की कमी हो जाएगी।

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