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नेहरू पुण्यतिथि पर विशेष – भारत निर्माण में अभूतपूर्व योगदान है पंडित नेहरू का! – डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट

महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी सुख सुविधाओं को त्याग कर आजादी के आंदोलन में भाग लिया था। वे अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी के कंधे से कंधा मिलाकर अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ लड़े थे। चाहे असहयोग आंदोलन की बात हो या फिर नमक सत्याग्रह या फिर १९४२ के भारत छोड़ो आंदोलन  हो ,उन्होंने गांधी जी के हर आंदोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। पंडित जवाहरलाल नेहरू की विश्व के बारे में जानकारी से गांधी जी काफ़ी प्रभावित होते थे और इसीलिए आज़ादी के बाद वह उन्हें प्रधानमंत्री पद पर देखना चाहते थे। महात्मा गांधी के ही प्रयास से वे देश के प्रथम प्रधानमंत्री बन पाए। सन् १९२० में उन्होंने उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जि़ले में पहले किसान मार्च का आयोजन किया था। सन १९२३ में पंडित नेहरु अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव चुने गए।

सन १९५२ में देश मे पहले आमचुनाव हुए ,जिसमें कांग्रेस पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में आई और पंडित जवाहरलाल नेहरू भारत के पहले प्रधानमंत्री चुने गए। इससे पहले वह सन १९४७ में आज़ादी मिलने के बाद से अंतरिम प्रधानमंत्री थे। संसद की ४९७ सीटों के साथ-साथ राज्यों की विधानसभाओं के लिए भी चुनाव हुए थे। लेकिन जहाँ संसद में कांग्रेस पार्टी को पूर्ण बहुमत हासिल हुआ ,वहीं कुछ राज्यों में कांग्रेस को दूसरे दलों से ज़बर्दस्त टक्कर मिली थी। कांग्रेस पार्टी बहुमत हासिल करने में चेन्नई, हैदराबाद और त्रावणकोर जैसे शहरों में विफल रही थी, उसे कम्युनिस्ट पार्टी ने कड़ी टक्कर दी थी। हालाँकि इन चुनावों में हिन्दू महासभा और अलगाववादी सिक्ख अकाली पार्टी को मुँह की खानी पड़ी थी। पहले चुनाव के बाद से ही कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई) ने दक्षिणी राज्यों में जनसमर्थन बढ़ाना शुरू कर दिया था, जिसके नतीजे सन १९५७ में हुए चुनाव में उसे मिले। त्रावणकोर-कोचिन और मालाबार को मिला कर बने केरल में कम्युनिस्ट पार्टी सत्ता में आई।सन

१९२९ में जब लाहौर अधिवेशन में गांधी ने नेहरू को अध्यक्ष पद के लिए चुना था, तब से ३५ वर्षों तक यानि सन १९६४ तक प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए पंडित नेहरू ने देश में विकास पटरी बिछाई थी , सन १९६२ में चीन से हारने के बावजूद, नेहरू अपने देशवासियों के आदर्श बने रहे। राजनीति के प्रति उनका धर्मनिरपेक्ष रवैया गांधी के धार्मिक और पारंपरिक दृष्टिकोण से भिन्न था। गांधी जी वस्तुत:  सामाजिक उदारवादी थे, जो देश को धर्मनिरपेक्ष बनाने की चेष्ठा कर रहे थे। नेहरु लगातार आधुनिक संदर्भ में बात करते थे। वहीं गांधी प्राचीन भारत के गौरव पर बल देते थे।

देश के इतिहास में एक ऐसा अवसर भी आया था, जब महात्मा गांधी को स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पद के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल और जवाहरलाल नेहरू में से किसी एक का चयन करना था। लौह पुरुष के सख्त तेवर के सामने नेहरू का विनम्र राष्ट्रीय दृष्टिकोण भारी पड़ा और वह न सिर्फ़ इस पद पर चुने गए, बल्कि उन्हें सबसे लंबे समय तक विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की बागडोर संभालने का गौरव हासिल भी हुआ।

पंडित जवाहरलाल नेहरू एक महान् राजनीतिज्ञ , प्रभावशाली वक्ता ही नहीं, प्रसिद्ध लेखक भी रहे। उनकी आत्मकथा सन १९३६ ई. में प्रकाशित हुई थी। उनकी अन्य पुस्तकों में भारत एक खोज, भारत और विश्व, सोवियत रूस, विश्व इतिहास की एक झलक, भारत की एकता और स्वतंत्रता और उसके बाद  उल्लेखनीय हैं। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने देश में औद्योगीकरण को महत्व बहुत महत्व दिया। भारी उद्योगों की स्थापना को उन्होंने प्रोत्साहन दिया। विज्ञान के विकास के लिए सन १९४७ ई. में नेहरू ने भारतीय विज्ञान कांग्रेस की स्थापना की।  भारत के विभिन्न भागों में स्थापित वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के अनेक केंद्र इस क्षेत्र में उनकी दूरदर्शिता के स्पष्ट प्रतीक हैं। खेलों में नेहरू की खास रुचि थी। उन्होंने खेलों को मनुष्य के शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए आवश्यक बताया था। एक देश का दूसरे देश से मधुर सम्बन्ध क़ायम करने के लिए सन १९५१ ई. में उन्होंने दिल्ली में प्रथम एशियाई खेलों का आयोजन कराया था। नेहरू ने भारत में लोकतांत्रिक समाजवाद की स्थापना का लक्ष्य रखा था। उन्होंने आर्थिक योजना की आवश्यकता पर भी बल दिया। वे सन १९३८ ई. में कांग्रेस द्वारा नियोजित राष्ट्रीय योजना समिति के अध्यक्ष भी बने। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् वे राष्ट्रीय योजना आयोग के प्रधान बने। नेहरू के व्यक्तिगत प्रयास से ही भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया था।जवाहरलाल नेहरू ने  निर्गुटता एवं पंचशील जैसे सिद्धान्तों का पालन कर विश्व बन्धुत्व एवं विश्वशांति को प्रोत्साहन दिया। उन्होंने पूंजीवाद, साम्राज्यवाद, जातिवाद एवं उपनिवेशवाद के ख़िलाफ़ जीवनपर्यन्त संघर्ष किया। अपने क़ैदी जीवन में जवाहरलाल नेहरू ने डिस्कवरी ऑफ़ इण्डिया, ग्लिम्पसेज ऑफ़ वर्ल्ड हिस्ट्री एवं मेरी कहानी नामक पुस्तकों की रचना कर स्वयं को एक लेखक के रूप में भी सिद्ध किया।उनको बच्चे बहुत प्रिय रहे,बच्चे भी उन्हें चाचा नेहरू के रूप में सम्मान देते थे।तभी तो उनका जन्मदिन बालदिवस के रूप में मनाया जाता है।

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