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करोल बाग के होटल में 17 जिंदगियां खाक होने की दर्दनाक कहानियां

नई दिल्ली। मंगलवार तड़के एक छोटी-सी चिन्गारी ने भयानक आग का रूप ले लिया और 17 जिंदगियां लील ले गई। दिल्ली के करोलबाग के होटल अर्पित में लगी इस आग में आग के वक्त करीब 53 लोग थे, जिनमें से 17 अपनों के बीच नहीं रहे। जो बच गए, उनमें से कइयों ने आपबीती सुनाई तो अपनों को खो दे वालों ने दर्द बयान किया। गुजरात के दिलीप ने सुनाई आपबीती। मौत की आग ही थी जिसकी तपिश ने नींद से जगाया। फिर जो मंजर देखा, उसे लड़खड़ाती जुबां से बयां भी नहीं कर पा रहे थे 58 साल का दिलीप त्रिवेदी। गुजरात के अहमदाबाद निवासी दिलीप खुद को खुशकिस्मत मान रहे हैं कि जिंदा हैं, बेशक उनके दो मोबाइल इस अफरातफरी में चोरी या गायब हो गए। मंगलवार को होटल के बाहर अपने लगेज के साथ खड़े दिलीप त्रिवेदी ने बताया कि वह अहमदाबाद में एक कंपनी के मार्केटिंग डिविजन मैनेजर हैं। कंपनी का हेड ऑफिस दिल्ली में है। मंगलवार को हेड ऑफिस में मीटिंग के लिए बुलाया गया था जिसके लिए सोमवार सुबह गुजरात से दिल्ली पहुंचे। वैसे तो बगल वाले होटल में बुकिंग थी लेकिन वहां फुल हो जाने पर उस होटल मैनेजमेंट ने अर्पित होटल में ठहरने का इंतजाम कराया। सुबह 9 बजे चेक इन किया था। रूम नंबर 101, फर्स्ट फ्लोर में ठहरे थे। सब कुछ ठीक था। फैमिली से फोन पर संपर्क में थे। उन्होंने बताया, ‘सोमवार देर रात ही बात हुई थी।
सुबह करीब ढाई बजे अपने रूम में अचानक बढ़ा हुआ टेंपरेचर फील हुआ। घबराहट, बेचैनी। बाहर निकलकर देखा तो शोरगुल, धुआं व अफरातफरी मची थी। कुछ लोगों को डर की वजह से ऊपर की ओर भागते देखा। हर तरफ चीख-पुकार थी। कई लोग तो खौफनाक मंजर देखकर चौथी मंजिल से छलांग लगा रहे थे। धुएं के कारण सांस लेने में काफी मुश्किल हो रही थी लेकिन मैं इतना डर चुका था कि खिड़की से लटक गया और कूदकर जान बचाई। सुबह टीवी पर फैमिली वालों ने जब न्यूज देखी तो वह कॉल करने लगे। मगर मेरे फोन गायब थे। कॉल से संपर्क नहीं हो पाने से फैमिलीवाले अनहोनी की आशंका में बेहद डर गए। मैंने किसी से मदद लेकर परिवार को फोन करके बताया कि मैं सेफ हूं।’ असम के मयूर बिजनस डील के लिए दिल्ली आए, उन्होंने बताई अपनी कहानी। बोले, सिर्फ चीख-पुकार, बढ़ता धुआं और आग की गर्मी, दूसरी तरफ मैं। भयानक हादसे को देखकर एक पल के लिए सांसें बंद हो गई थीं। मगर हिम्मत नहीं हारी और टावल को गीला किया और मुंह पर बांध लिया। होटल का फायर सिस्टम एकदम बेकार। न जाने कौन देता है इन लोगों को लाइसेंस और एनओसी।
आग के बारे में सबसे पहले कॉल मयूर ने किया था। वह असम से दिल्ली बिजनस के सिलसिले में आए हैं। मयूर ने एक-एक बात बताई। कहां आग लगी, क्या था माहौल। क्या लापरवाही दिखी और कैसे आग में ने 17 जिंदगियां खत्म कर दीं। मयूर ने बताया कि सुबह 3 बजे के आसपास अचानक दम घुटने लगा। गर्मी बढ़ गई। दरवाजा खोला तो सब धुआं-धुआं था। फायर अलार्म बजाया, लेकिन ऐसा लगा यह सिर्फ डमी है। लोगों की चीखने की आवाजें आ रही थीं। मयूर ने बताया, ‘मैं अपने दोस्त के साथ चौथे फ्लोर के रूम नंबर 402 में ठहरा था। न नीचे जाने का रास्ता दिखा न ही कोई हेल्प के लिए आया। इसके तुरंत बाद पुलिस को कॉल की।’ मयूर का आरोप है कि पुलिस और फायर डिपार्टमेंट काफी देर बाद आए। आग पर कैसे काबू पाया जाता। शुरुआत में जो भी गाड़ी आई वे छोटी थीं। हाइड्रोलिक गाड़ी तब आई जब स्थिति आउट ऑफ कंट्रोल हो गई। मयूर ने कहा, ‘किस तरह मैंनेअपनी जान बचाई यह भगवान ही जानता है। उम्मीद तो नहीं थी क्योंकि आग काफी भयानक थी। बस मुंह पर गीला टावल बांधे रखा जिससे मेरी जान बची और मैं हाइड्रोलिक मशीन के जरिए खिड़की तोड़कर बाहर निकला।’
अपने परिवार के तीन लोगों को हादसे में खो देने का दर्द केरल के पी.सी. सोमशेखरन के चेहरे पर साफ झलक रहा था। आरएमएल हॉस्पिटल की मॉर्चरी के बाहर पोस्टमॉर्टम का इंतजार कर रहे सोमशेखरन आए तो थे रिश्तेदार के घर एक शादी में शामिल होने के लिए, शादी के बाद घूमने की प्लैनिंग की और इसी बीच इस हादसे का शिकार हो गए। सोमशेखरन की मां नलिनी अम्मा, बहन जयश्री और भाई पीसी विद्यासागर की हादसे में दर्दनाक मौत हो गई। शव इतनी बुरी तरह से जले थे कि पहचान पाना भी संभव नहीं हो रहा था। नलिनी और जयश्री की पहचान उनकी जूलरी से हुई। दोनों के हाथ में सोने की चूड़ी, गले में लॉकेट और हाथ की अंगूठी से पहचान संभव हो पाई।
84 साल की नलिनी अम्मा को घूमने का शौक था, वह शादी के बाद दिल्ली के आसपास रोज घूम रही थीं। मंगलवार को हरिद्वार जाने की तैयारी में थीं और उसके बाद वाघा बॉर्डर जाना चाहती थीं, लेकिन उनका यह शौक पूरा नहीं हो पाया। सोमशेखरन ने एनबीटी को बताया कि हम लोग गाजियाबाद में अपने एक रिश्तेदार के घर शादी में आए थे। 8 फरवरी को शादी थी, शादी के बाद घूमने का प्लान था। सबसे पहले वृंदावन और मथुरा गए। उन्होंने कहा कि मां कृष्ण जन्मस्थल घूमना चाहती थीं, इसलिए हमलोग वहां गए। वहां से लौटने के बाद सोमवार को दिल्ली दर्शन के लिए निकले थे। मंगलवार को हमारा प्लान हरिद्वार जाने का था। मां धार्मिक प्रवृत्ति की थी, इसलिए जहां भी जाती थी वहां के धार्मिक स्थल जरूर जाती थी, इसलिए दिल्ली के आसपास के धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल हमलोग घूम रहे थे। उन्होंने कहा कि हम लोग हरिद्वार जाने के लिए तैयार हो रहे थे, तभी घुटन होने लगी। इसी बीच लाइट चली गई, हमलोग घबरा गए। सब इधर-उधर भागने लगे। आग तेजी से फैलने लगी, हमें कुछ पता नहीं चल रहा था कि किधर जा रहे हैं, जिसको जिधर सांस मिल रही थी, उस ओर भागने लगे। लेकिन मां, बहन और भाई बुरी तरह इस आग में फंस गए और वो बुरी तरह से झुलस गए। उन्होंने कहा कि घुटन की वजह से उनकी पत्नी वीणा को सांस लेने में दिक्कत हो रही है, उनका इलाज बीएलके हॉस्पिटल में चल रहा है, अभी वह खतरे से बाहर बताई जा रही हैं। उन्होंने कहा कि हम कुल 13 लोग शादी में आए थे, बाकी 9 लोग ठीक हैं और एक हॉस्पिटल में ऐडमिट हैं।
गुजरात से आईं वकील राबिया भी शिकार, पति की पहले ही हो चुकी थी मौत पहले पिता और अब मां नहीं रहीं, ईशान अब अकेला रह गया। ईशान की मां राबिया वकील थीं और दिल्ली के एक कोर्ट में सुनवाई के लिए आई थीं लेकिन बदकिस्मती उन्हें उसी होटल में ले गई जहां रात में मौत बरसने वाली थी। अग्निकांड के शिकार लोगों की लिस्ट में एक नाम राबिया मेनम (53) का भी है। वह सूरत के स्टेट इलेक्ट्रिसिटी कॉर्पोरेशन लिमिटेड में लीगल अडवाइजर थीं। सोमवार रात वह सूरत से अपने एक सहयोगी के साथ दिल्ली पहुंची थीं। दोनों होटल की चौथी मंजिल पर दो अलग-अलग कमरों में ठहरे थे। आग की घटना के बाद उनके सहयोगी को रेस्क्यू कर बचा लिया गया, लेकिन राबिया की जान चली गई।
अपनी मां की मौत की सूचना के बाद ईशान आरएमएल अस्पताल पहुंचा, वो लगातार रोता रहा। दिल्ली में पढ़ाई करने वाला ईशान सदमे था। उसके साथ कुछ दोस्त थे। दोस्तों का कहना था कि कुछ साल पहले ईशान के पिता की मौत हो गई थी, अब उसके पास सिर्फ उसकी मां ही बची थीं। वह अपनी मां से काफी जुड़ा हुआ था। वह आज अपनी मां से मिलने वाला भी था, लेकिन इससे पहले ही यह घटना हो गई और अब उसके सिर से मां का हाथ भी चला गया। राबिया के एक अन्य सहयोगी ने बताया कि उन्हें मंगलवार दोपहर सुप्रीम कोर्ट में होने वाली एक सुनवाई में गुजरात स्टेट इलेक्ट्रिसिटी कॉर्पोरेशन लिमिटेड की तरफ से शामिल होना था। तड़के सुबह लगी आग में वह फंस गईं और बेसुध स्थिति में उन्हें अस्पताल पहुंचाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। एक रिश्तेदार ने कहा कि अब ईशान अपनी मां का अंतिम संस्कार अपने पैतृक शहर में करना चाहते हैं, उनके पोस्टमॉर्टम के बाद वो डेड बॉडी लेकर जाएंगे। प्रणव की मां रोते-रोते बेहोश भी हो गईं। 10 फरवरी को प्रणव कुमार भास्कर ने अपना 33वां जन्मदिन पत्नी और बच्चे के साथ हैदराबाद में मनाया था। दो दिन बाद करोल बाग में हादसे में उनकी मौत हो गई। प्रणव, पटना के रहने वाले थे और हैदराबाद में हिंदुस्तान पेट्रोलियम में काम करते थे। कंपनी के काम के सिलिसले में वह दिल्ली आए थे और करोल बाग के इस होटल में ठहरे हुए थे। घटना की जानकारी मिलते ही पटना से उनके माता-पिता और रिश्तेदार अस्पताल पहुंच गए थे। कंपनी के भी कई लोग आए।
प्रणव के माता-पिता पटना में रहते हैं। घटना की जानकारी पहले मीडिया से मिली। बाद में उनके रिश्तेदार ने इस घटना की जानकारी दी और बताया कि प्रणव घायल हैं और अस्पताल में हैं। उनके माता-पिता दिल्ली पहुंचे तो पता चला कि उनका बेटा अब इस दुनिया में नहीं है। उनकी मां दहाड़ मारकर रोने लगीं। अस्पताल की मॉर्चरी के बाहर उनके रोने से हर कोई आहत था। एकतरफ उनकी मां तो दूसरी तरफ उनके पिता रो रहे थे। प्रणव की मां बार-बार कह रही थीं, ‘मुझे मेरे बच्चे को दिखाओ, मेरा बेटा ला दो, मुझे मेरा बच्चा चाहिए।’ रोते-रोते वह बेहोश भी हो गईं। पानी देने से होश में आईं और फिर रोने लगीं। आरएमएल अस्पताल के बाहर एक अजीब तरह की खामोशी थी। हर चेहरे पर एक सवाल था, दर्द था। प्रणव के रिश्तेदार मनीष ने कहा कि बहुत ही मेहनती और लगनशील और परिवार के दुलारे थे प्रणव। प्रणव अपने पीछे पत्नी दीपा और दो बच्चे छोड़ गए हैं। उनकी पत्नी एमटेक हैं, लेकिन शादी के बाद वह जॉब नहीं कर रही हैं। मनीष ने कहा कि आरएमएल अस्पताल में प्रणव का पोस्टमॉर्टम कर दिया है, लेकिन डेडबॉडी को एम्बामिंग के लिए एम्स रेफर कर दिया गया है। बुधवार सुबह उनकी फ्लाइट 10.45 बजे है। वे लोग डेडबॉडी लेकर पटना जाएंगे। प्रणव के पिता कॉन्ट्रैक्टर और मां नर्स हैं।
आग के बाद मृतकों और घायलों में अपने पापा को बदहवास हालत में खोज रहे थे हिमांशु। उनके पिता लाल चंद इसी अर्पित होटल में पिछले 25 साल से काम कर रहे थे। फिलहाल वह किचन सुपरवाइजर थे। अग्निकांड के बाद लाल चंद कहां लापता हैं, किस अस्पताल हैं, उनका क्या हुआ? ऐसे तमाम सवाल मन में लिए मंगलवार को उनका बेटा हिमांशु होटल के बाहर बेबस खड़ा था। आंखों में आंसू। जुबां पर एक ही बात, मेरे पापा कहां हैं? हिमांशु ने बताया कि वह परिवार के साथ आर्य समाज रोड पहाड़गंज में रहते हैं। घर में पिता लाल चंद, मां बेबी और छोटी बहन हैं। राजेंद्र प्लेस इलाके में कॉलेज से सीएस का रहे हिमांशु के मुताबिक, पापा की हर पंद्रह दिन डे नाइट शिफ्ट की ड्यूटी चेंज होती थी। पापा की ड्यूटी इन दिनों नाइट में चल रही थी। सोमवार रात करीब साढ़े आठ बजे घर से होटल आए थे। वह होटल के टॉप फ्लोर पर बने ओपन रेस्त्रां में रात के वक्त सोते थे। मंगलवार सुबह पड़ोसियों ने टीवी पर न्यूज देखकर आग के बारे में बताया था। जब यहां आकर देखा तो पापा का कोई अता पता नहीं था। पुलिस और फायर वालों ने बताया कि सभी को अलग अलग अस्पतालों में लेकर गए हैं। उसके बाद पूरे परिवार ने सारे अस्पताल छान मारे मगर कहीं भी कोई बताने को तैयार नहीं कि आखिर मेरे पापा का क्या हुआ। उनका फोन भी बंद है। होटल में रात को 15 से 20 लोगों का स्टाफ रहता है। जान बचाने के लिए होटल से छलांग लगाने वाले इनकम टैक्स के एक होनहार अधिकारी सुरेश कुमार की भी मौत हो गई। वह इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में असिस्टेंट कमिश्नर के पद पर झंडेवालान ऑफिस में तैनात थे। वह इस होटल में पिछले कई महीने से रहा करते थे। उनके साथ काम करने वाले लोगों ने बताया कि वह पिछले साल अगस्त से इसी होटल में रहते थे। वह यूपी के सहारनपुर के रहने वाले थे और पंचकूला इलाके में वह अपने पूरे परिवार के साथ रहते थे। दिल्ली में ऑफिस होने की वजह से वह होटल में ही रहते थे। सुरेश की मौत की खबर सबसे पहले उनके भतीजे अनुभव को मिली, जो डॉक्टर हैं। सुरेश कुमार की बहन सरिता ने बताया कि उनके भाई बेहद ही सादगी भरी जिंदगी जीते थे। झंडेवालान स्थित इनकम टैक्स ऑफिस में तैनात होने की वजह से करोल बाग के इसी होटल में वह रहते थे। ऑफिस में छुट्टी होने पर वह पंचकूला अपने घर जाते थे। वर्किंग डे में वह होटल से ही ऑफिस जाते थे। लेडी हार्डिंग अस्पताल में पोस्टमॉर्टम के बाद उनके बॉडी को उनके भांजा अनुभव और बहन पंचकूला लेकर रवाना

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