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ना मोदी, ना राहुल अब सिर्फ नीतीश के हैं पीके

नई दिल्ली। पीके के नाम से मशहूर चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने सबको चौंकाते हुए बड़ा राजनीतिक फैसला लिया है। वो जनता दल (यूनाइटेड) में शामिल हो गए हैं। रविवार को पटना में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की उपस्थिति में प्रशांत किशोर जेडीयू में शामिल हुए। नीतीश कुमार ने जेडीयू की राज्य कार्यकारिणी की बैठक में उन्हें पार्टी की सदस्यता दिलवाई। 2019 लोकसभा चुनाव से पहले इसे नीतीश कुमार का बड़ा दांव कहा जा सकता है या यूं कहें कि 2019 चुनाव से पहले ये उनके लिए बहुत अच्छी खबर है। प्रशांत किशोर अब तक राजनीतिक दलों के लिए पर्दे के पीछे काम करते थे। वो पहले भी नीतीश कुमार के लिए काम कर चुके हैं, लेकिन कहा जा सकता है कि अब वो सिर्फ नीतीश के ही हैं और सिर्फ नीतीश के लिए ही काम करेंगे। 2015 विधानसभा चुनाव में पीके ने महागठबंधन के लिए काम किया और चुनावी नतीजे भी महागठबंधन के पक्ष में आए। सरकार बनने के बाद नीतीश ने प्रशांत किशोर को अपनी सरकार में कैबिनेट मंत्री के दर्जे वाला पद दिया था।
नीतीश कुमार अभी एनडीए में बीजेपी के सहयोगी हैं, लेकिन गठबंधन में उनकी स्थिति को अभी बेहद मजबूत नहीं माना जाता है। लोकसभा चुनाव के लिए सीटों के बंटवारे को लेकर भी अभी तक दोनों दलों में सहमति नहीं बन पाई है। कई कयास ऐसे भी हैं कि नीतीश वापस महागठबंधन में शामिल होना चाहते हैं। ऐसे में चुनाव से पहले नीतीश के बीजेपी से अलग होने या वापस महागठबंधन में शामिल होने की कोई भी स्थिति बनती है तो प्रशांत किशोर एक अहम भूमिका निभा सकते हैं। हाल के कुछ दिनों में बिहार में जिस तरीके से एक के बाद एक अपराधों के मामले सामने आए हैं, उससे नीतीश सरकार पूरी तरह से बैकफुट पर है, फिर चाहे वो मुजफ्फरपुर कांड हो या लगातार होती मॉब लिंचिंग की वारदातें। ऐसे में सरकार और नीतीश की पुरानी सुशासन बाबू की छवि को फिर से निखारने में पीके की अहम भूमिका रहने वाली है। 2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी तीसरी बार मुख्यमंत्री चुने गए थे, वो प्रशांत किशोर की पहली राजनीतिक सफलता थी। हालांकि उन्हें बड़ी ख्याति 2014 लोकसभा चुनाव से मिली। 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को बहुमत दिलवाने और मोदी को पीएम बनवाने में उनकी अहम भूमिका थी।
2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान प्रशांत किशोर को नरेंद्र मोदी के कार्यक्रमों जैसे- चाय पे चर्चा, 3डी रैलियां, रन फॉर यूनिटी, मंथन और सोशल मीडिया प्रोग्राम के श्रेय दिया गया था। इसके बाद 2015 में उन्होंने महागठबंधन के लिए सफल काम किया। 2017 में उन्होंने कांग्रेस के लिए पंजाब और उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी काम किया। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की ‘कॉफी विद कैप्टन’ और यूपी में राहुल की ‘खाट सभा’ के पीछे उन्हीं का दिमाग था। हालांकि यूपी में ये प्रयोग सफल नहीं हुआ, लेकिन पंजाब में कांग्रेस सत्ता में आई। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने ट्वीट कर पीके और उनकी टीम को जीत का श्रेय भी दिया था। इस तरह का ट्रैक रिकॉर्ड रखने वाले पीके अब जब नीतीश कुमार के साथ पूरी तरह से जुड़ गए हैं तो इसे बिहार के मुख्यमंत्री के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं कहा जा सकता, वो भी तब जब सत्ता में रहते हुए नीतीश कुमार कमजोर लग रहे हैं।

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