एक बार पूरे क्षेत्र में जब वह पूर्णानन्द छा जाता है
तो देखने वाला मन समृद्ध बन जाता है।
सबसे अधिक उपयोगी होता है।
जब भी वह वस्तुओं के पीछे दौड़ता है
वह स्वयं से पृथक से पृथक बना रहता है।
प्रसन्नता और आनंद की कलियां
तथा दिव्य सौंदर्य और दीप्ति के पत्ते उगते हैं।
यदि कहीं भी बाहर कुछ भी नहीं रिसता है
तो मौन परमानंद फल देगा ही।
जो भी अभी तक किया गया है
और इसलिए स्वयं में उससे जो भी होगा
वह कुछ भी नहीं है।
-ओशो