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असत्य का दुष्प्रभाव

हम जीवन में सर्वाधिक असत्य का भाषण तब करते हैं जब हम अपनी जिम्मेदारियों से बचना चाहते हैं। जब हम अपने समस्त कर्तव्यों के निर्वाहन का भाव मन में उत्पन्न कर लेते हैं तो हम पूर्णता का अनुभव भी करने लगते हैं।

असत्य हमें अंदर से कमजोर बनाता है मिथ्या भाषण से हमारा हृदय मलिनता से भरने लगता है। दायित्यों का समर्पण भाव से संपादन हमारे आत्मबल में आश्चर्य जनक वृद्धि के साथ साथ परमात्मा में भक्ति भाव को भी जन्म देता है। बेहतर है हम सत्य का आश्रय लेकर एक जिम्मेदार इंसान बनें और प्रत्येक कर्म को ईश्वर का आदेश समझ कर सम्पन्न करें।

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