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बाइडन और ट्रंप ने वाशिंगटन में जीते अपनी-अपनी पार्टी के प्राइमरी चुनाव

वाशिंगटन। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में एक बार फिर जो बाइडन और डोनाल्ड ट्रंप के बीच मुकाबला होगा। मंगलवार रात को दोनों ने अपनी-अपनी पार्टी की तरफ से उम्मीदवारी के लिए पर्याप्त प्रतिनिधियों का समर्थन हासिल कर लिया। बाइडन डेमोक्रेटिक पार्टी और ट्रंप रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से उम्मीदवार होंगे। हालांकि, आधिकारिक तौर पर वे गर्मियों में होने वाले राष्ट्रीय सम्मेलन के बाद ही उम्मीदवार बनेंगे। २०२० राष्ट्रपति चुनाव में भी इन दोनों के बीच मुकाबला हुआ था, जिसमें बाइडन जीते थे।
मंगलवार को जॉर्जिया, वाशिंगटन और मिसिसिपी जैसे अहम राज्यों में रिपब्लिकन पार्टी और डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ से प्राइमरी चुनाव आयोजित किए गए। बाइडन तीनों राज्यों में डेमोक्रेटिक पार्टी का प्राइमरी चुनाव जीतने में कामयाब रहे, वहीं ट्रंप ने भी अपनी पार्टी के प्राइमरी चुनाव में इन राज्यों में जीत दर्ज की। इसी के साथ अब बाइडन के पास २,०९९ डेमोक्रेट प्रतिनिधियों का समर्थन हो गया है, वहीं ट्रंप के पास १,२२८ रिपब्लिकन प्रतिनिधियों का समर्थन है।
आपको बता दें कि ट्रंप और बाइडन दोनों को ही अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की उम्मीदवारी हासिल करने में किसी खास चुनौती का सामना नहीं करना पड़ा। डेमोक्रेटिक पार्टी में बाइडन को किसी बड़े उम्मीदवार ने चुनौती नहीं दी और दूसरे नंबर पर ‘अनकमिटेड’ को मात्र २० प्रतिनिधि मिले। निक्की हेली के रेस से हटने के बाद रिपब्लिकन पार्टी में भी ट्रंप एकमात्र उम्मीदवार रह गए थे। दूसरे नंबर पर ही हेली को मात्र ९१ प्रतिनिधियों का समर्थन मिला।
डेमोक्रिटिक पार्टी की उम्मीदवार मिलने के बाद बाइडन ने कहा कि देश में स्वतंत्रता और लोकतंत्र खतरे में हैं और ट्रंप अमेरिका के लिए एक खतरा हैं। उन्होंने कहा कि अब मतदाताओं को देश का भविष्य तय करना होगा।दूसरी तरफ ट्रंप ने कहा कि अब हमें जो बाइडन को हराने की तैयारी करनी है। चुनाव की अहमियत समझाते हुए उन्होंने अपने समर्थकों से कहा कि ये उनके जीवन का सबसे अहम वोट होने जा रहा है।
ट्रंप के सामने सबसे बड़ी चुनौती उनके खिलाफ दर्ज मुकदमे हैं। उन पर गंभीर अपराध के करीब ९१ मुकदमे चल रहे हैं, जिनमें २०२० राष्ट्रपति चुनाव का नतीजा पलटने की कोशिश करने और संविधान के खिलाफ बगावत करने जैसे आरोप शामिल हैं।दूसरी तरफ ८१ वर्षीय बाइडन के सामने सबसे बड़ी चुनौती उनकी उम्र है और कहा जाता है कि वो देश चलाने के लिए काफी बूढ़े हो चुके हैं। अवैध अप्रवासियों का मुद्दा भी उनके लिए बड़ी चुनौती है।

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