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इजराइल इंतहा कर दे रहा!

श्रुति व्यास

खाने और पानी की कमी के चलते गाजा में छह बच्चों ने दम तोड़ दिया। खून से लथपथ एक आदमी आटे के बोरे के पास जमीन पर पड़ा मिला। बताया जाता है इजरायली सैनिकों ने उसे तब गोली मार दी जब वह मदद का इंतजार कर रहा था।गाजा में ज़मीनी स्तर पर मदद पहुँचने की गति बहुत धीमी हो गई है।
स्वयंसेवी संस्थाओं ने चेताया है कि कुछ ही दिन बाद दुनिया टीवी पर बच्चों की तिल-तिल मौत का सीधा प्रसारण देखेगी। गाजा पर हुई बमबारी में अब तक ३०,००० फिलिस्तीनी अपनी जान गँवा चुके हैं। इनमें से दो-तिहाई महिलाएं और बच्चे हैं।
सुनियोजित हत्या, नरसंहार, होलोकास्ट – आप इसके लिए अपनी पसंद का कोई भी शब्द चुन सकते हैं। मगर यह साफ़ है कि इतिहास अपने आप को दुहरा रहा है। अंतर केवल यह है कि इस बार स्थिति ठीक उलट है।
पहले के पीडित अब अपराधी हैं। जो तब बर्बाद होने से बच गए थे, वे अब बर्बादी कर रहे हैं। जिन्हें जमीन हासिल हुई, जिनका पुनर्वास हुआ, जिन्हें एक नया जीवन मिला, वे अब दूसरों की ज़मीन और उनकी जिन्दगी छीन लेना चाहते हैं, एक समय सारी दुनिया उनके साथ खड़ी थी।
पूरी दुनिया ने उनका समर्थन किया, उनके लिए लड़ाई लड़ी, लड़ाई में उनका साथ दिया, इंसाफ हासिल करने में उनकी मदद की। और आज वही दुनिया पिछले १४५ दिनों से उनके भयावह अत्याचारों को चुपचाप देख रही है।
आखिर दुनिया चुप क्यों है? सभी बापों का माईबाप अमरीका, इजराइल के इतने क्रूर व्यवहार को बर्दाश्त कर रहा है? क्या उनकी अंतरात्मा मर चुकी है? क्यों वे बेकसूर फिलिस्तीनी बच्चों, माओं, दादा-दादियों, पत्रकारों, प्रोफेसरों और टीचरों के कत्लेआम से नजरें चुरा रहे हैं?
बेंजामिन नेतन्याहू को रोकने के लिए बाइडन वैसी हिम्मत क्यों नहीं दिखा पा रहे हैं जैसी कि १९८२ में रोनाल्ड रीगन ने दिखाई थी?
उस साल बेरूत पर ११ घंटे चले हवाई हमलों में १०० लोग मारे गए थे। रीगन ने उसी दिन तत्कालीन इजरायली प्रधानमंत्री मेनाखेम बेगिन को फोन लगाकर अपना ‘आक्रोश’ व्यक्त किया और ‘गैर-ज़रूरी बर्बादी और खून-खराबे’ को गलत बताया। कहा जाता है कि रीगन ने अपनी नाराजगी जाहिर करने के लिए ‘होलोकास्ट’ शब्द का इस्तेमाल किया।
इसके जवाब में बेगिन ने कटाक्ष करते हुए कहा, “मुझे लगता है कि होलोकास्ट का मतलब मैं जानता हूं”।मगर रीगन अपनी बात पर अड़े रहे। उन्होंने जोर देकर कहा कि बेरूत में युद्धविराम करना ज़रूरी है। इसके बीस मिनट बाद बेगिन ने रीगन को फोन करके बताया कि उन्होंने शेरोन (जो उस समय इजराइल के रक्षामंत्री थे) को बमबारी बंद करने के लिए कह दिया है। और बमबारी बंद हो गई।
उनके हुक्म की तामील इतनी जल्दी होगी, इसकी उम्मीद शायद रीगन को भी नहीं थी। ऐसा बताया जाता है कि फ़ोन रखने के बाद उन्होंने अपने एक सहायक से कहा कि उन्हें नहीं मालूम था कि वे इतने शक्तिशाली हैं!
लेकिन वे इतने शक्तिशाली थे। और आज ४२ साल बाद बाइडन भी उतने ही शक्तिशाली हैं। लेकिन वे इजराइल को बिना शर्त समर्थन दे रहे हैं, जिसका फायदा उठाते हुए नेतन्याहू खुलेआम मनमानी कर रहे हैं। बर्बर बमबारी और हत्याएं करने के बावजूद उनका बाल बांका नहीं हो रहा है।
हर हफ्ते बाइडन और उनके शीर्ष सहयोगी नेतन्याहू के प्रति नाराजगी जताते हैं और वे जिस तरह की लड़ाई लड़ रहे हैं, उसे गलत ठहराते हैं। एक अनाम अमरीकी अधिकारी द्वारा लीक की गई जानकारी के मुताबिक बाइडन कम से तीन बार नेतन्याहू को ‘एसहोल’ (एक अश्लील गाली) कह चुके हैं। एक अज्ञात स्त्रोत ने बताया कि बाइडन कई बार कह चुके हैं कि “बहुत हो गया” और “यह सब अब बंद होना चाहिए”।
इसके बावजूद वे इजराइल को कूटनीतिक संरक्षण दे रहे हैं और हथियार भी, जिसके चलते इजराइल युद्ध जारी रख पा रहा है। हमास के हमलों के बाद बाइडन ने कांग्रेस से इजराइल को अतिरिक्त हथियार और सुरक्षा देने के लिए १४.३ अरब डालर की मांग की थी। हालांकि यह पैकेज कांग्रेस ने अभी तक मंजूर नहीं किया है, लेकिन बाइडन प्रशासन ने फिर भी इजराइल को हथियार भेजे।
नेतन्याहू तो अब यह भी तय कर रहे हैं कि युद्ध के बाद गाजा में क्या होगा। और अमरीका अपने वीटो का इस्तेमाल कर संयुक्त राष्ट्र संघ में इजराइल की कड़ी आलोचना करने वाले प्रस्तावों को पास नहीं होने दे रहा है। अभी तक अमरीका तीन बार इजराइल के पक्ष में ऐसा कर चुका है।
बाइडन इजराइल पर दबाव डाल सकते हैं। वे इजराइल को असलाह, बम और गोपनीय जानकारियों की सप्लाई रोक सकते हैं। वे इजराइल के पक्ष में वीटो का इस्तेमाल करना बंद कर सकते हैं। यह सब करने की बजाय बाइडन केवल दुनिया को यह दिखा रहे हैं वे नेतन्याहू से कितने परेशान है।
बाइडन का नेतन्याहू और इजराइल प्रेम इतना ज्यादा है कि उसकी खातिर वे अपना राजनीतिक भविष्य को दांव पर लगा रहे हैं और अमरीका की एक लोकतंत्र के रूप में प्रतिष्ठा को भी।लेकिन बाइडन हमेशा से नेतन्याहू के प्रति इतने नरम नहीं थे।
राष्ट्रपति के रूप में बाइडन के शुरूआती दो सालों पर लिखी गयी एक किताब से पता चलता है कि २०२१ में हुए गाजा युद्ध के दौरान बाइडन ने दो दिन में छह बार नेतन्याहू से टेलीफोन बातचीत की और युद्धविराम हो गया। और इसके बाद एक महीने से भी कम समय में इजरायली प्रधानमंत्री को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
तो इस बार क्या अलग है? बाइडन इतने कमज़ोर क्यों हो गए हैं? क्या ७ अक्टूबर को हमास के अचानक हमले से बाइडन और अमरीकियों को जबरदस्त धक्का लगा है? क्या वे वाकई यह मानते हैं कि इजराइल के लिए ७/१० उनके ९/११ जैसा है? क्या यह अपराधबोध है? ऐसी खबरें आ रही हैं कि अमरीकी गुप्तचर सेवाओं ने अक्टूबर के हमले से काफी पहले इजराइल द्वारा दी गई गोपनीय सूचनाओं के आधार पर और स्वयं के सूत्रों के हवाले से कम से कम दो रिपोर्टों में बाइडन प्रशासन को चेतावनी दी थी कि इजराइल और फिलिस्तीनियों के बीच टकराव हो सकता है।
हो सकता इन सभी प्रश्नों का उत्तर हाँ हो और उसके चलते बाइडन स्वयं को असहाय पा रहे हों। मगर बाइडन यह भूल रहे हैं कि इजराइल की बर्बरता को नजऱअंदाज़ कर वे एक गलती के बाद दूसरी गलती कर रहे हैं।
यह उम्मीद करना बेमानी है कि नेतन्याहू की जिद्द के खिलाफ बाइडन कोई कड़ा रूख अपनाएंगे। वे रीगन की तरह होलोकास्ट के लिए बीबी को खरी-खोटी नहीं सुनायेंगे। वे २०२१ का रीप्ले नहीं करेंगे।
लेकिन यदि राष्ट्रपति ऐसा करने को तैयार नहीं होंगे, तो यह साफ हो जाएगा कि इस बार, इस नए दौर में, अमरीका ने भी होलोकास्ट का कहर बरपाने वालों के साथ खड़े होने का फैसला किया है।

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