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मैदान में डटी निक्की हैली को सलाम! -श्रुति व्यास

कल मैंने लिखा था कि अमेरिका की रिपब्लिकन पार्टी के मुकाबलों में डोनाल्ड ट्रंप हार नहीं सकते। लेकिन बावजूद इसके यह ज़रूरी नहीं कि अपराजेय व्यक्ति के सामने हथियार डाल ही दिए जाएं।
इसलिए उनकी विरोधी निक्की हैली अंतिम क्षण तक ट्रंप से मुकाबला करने के प्रति प्रतिबद्ध हैं। वे मानती हैं कि उन्हें तब तक हार स्वीकार नहीं करनी है जब तक अंतिम मैच का परिणाम घोषित नहीं हो जाता। संशय और निराशा जिन लोगों का मूलभाव है, वे मानते हैं कि हैली एक हारा हुआ मैच खेल रही हैं। वे ट्रंप से मीलों पीछे हैं और उनके गृह राज्य साउथ केरोलाईना में उनकी करारी हार के बाद उन्हें चंदा देने वाले लगभग गायब हो गए हैं। पर हर हार, हर प्रहार उन्हें और मजबूती दे रहा है। वे मैदान छोड़कर भागने वालों में से नहीं हैं।
और यही कारण है कि अंतिम क्षण तक उम्मीद का दामन न छोडऩे वाले ट्रंप-विरोधियों के लिए और सुशिक्षित खांटी रिपब्लिकनों के लिए वे अब भी आशा की किरण हैं। वे लोग अब भी आशान्वित हैं। और हैली भी। साउथ केरोलाईना में उनकी हार के बाद उन्होंने एक तार्किक तर्क प्रस्तुत किया: “हमें साउथ केरोलाईना में ४० फीसद वोट मिले हैं। न्यू हैम्पशायर में भी हमें करीब-करीब इतने ही वोट मिले थे। मैं अकाउंटेंट हूँ और जानती हूँ कि ४० फीसद, ५० फीसद नहीं होते। मगर मैं यह भी जानती हूँ कि ४० फीसद बहुत कम भी नहीं होते।”
हैली एक मंझी हुई राजनेता हैं। वे जो कहतीं हैं वह लोगों को वाजिब लगता है।ट्रंप के तीखे हमलों और ट्रंप-समर्थकों द्वारा उनकी सभाओं में उन्हें हूट करने के बावजूद वे पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। उन्हें अपने तर्कों और विचारों की सत्यता पर पूरा भरोसा है।
ट्रंप-युग की शुरुआत के बाद से अमेरिका में वोट देने के आधार बदल गए हैं। मतदाता एक गढ़े गए राजनैतिक नैरेटिव की गिरफ्त में हैं और पूरी तरह ध्रुवीकृत हो चुके हैं।ट्रंप को श्रमिक वर्ग के अशिक्षित पुरुषों और महिलाओं का पूरा समर्थन हासिल है। अमेरिकी मीडिया कहता है कि यह वर्ग, कुल मतदाताओं का करीब चौथाई हिस्सा है और ट्रंप-युग के आविर्भाव से पहले वह वोट ही नहीं देता था। अब समय बदल गया है और जाहिर है कि इसके सबसे बड़े लाभार्थी ट्रंप हैं।
मगर हैली इस स्थिति से कतई घबराई हुईं नहीं हैं – या कम से कम ऐसे लगता तो है। अब तक जितने भी राज्यों में चुनाव हुए हैं, उनमें से एक में भी वे जीत हासिल नहीं कर सकीं हैं। इसका मतलब यह है कि प्राइमरीज में उनकी विजय की कोई सम्भावना नहीं है। मुकाबला बहुत कड़ा, बल्कि एकतरफा है, मगर हैली मजबूती से जमी हुई हैं। उन्हें किस चीज़ से ताकत मिल रही है? वे मैदान छोडऩे के लिए तैयार क्यों नहीं हैं? ऐसी रेस में दौड़ते रहने का क्या अर्थ है जिसमें आपकी हार तय हो? अगर ट्रंप की जीत सुनिश्चित है, तो लड़ते रहने का क्या मतलब है?
निक्की हैली, पार्टी के रीगन युग की आखिरी प्रतिनिधि हैं। और वे यह जानती हैं। वे नहीं चाहती कि यह ग्रैंड ओल्ड पार्टी ट्रंप जैसे लफ्फाजों के सामने घुटने टेक दे। उनकी सोच ट्रंप के ठीक उलट है। वे चाहती हैं कि अमेरिका की वैश्विक मामलों में दखल हो, वे मुक्त व्यापार की हामी हैं और उनका विचार है कि आम लोगों की रोजाना की ज़िन्दगी में सरकार का कम से कम हस्तक्षेप होना चाहिए। वे मानती हैं कि अमेरिका अब भी एक महान और भला देश है।
इसके विपरीत, ट्रंप आज के अमरीका पर हमलावर हैं और मानते हैं कि वे अमरीका के मुक्तिदाता, उसके मसीहा है। पिछले हफ्ते के अंत में अपने सार्वजनिक भाषणों में हैली ने जोर देकर कहा कि रूस अपने साम्राज्य का विस्तार करता चाहता है और पहले से कहीं अधिक खतरनाक बन गया है। उन्होंने यह भी कहा कि अमेरीकियों को नाटो की उपयोगिता पर संदेह हैं। वे यह भी मानती हैं कि नेताओं की भाषा और लहजा संयत होना चाहिए। फोर्ट मिल में बोलते हुए उन्होंने कहा “हमें ऐसे हालात नहीं बनने देने चाहिए जिनमें हम किसी व्यक्ति से सिर्फ इसलिए नफरत करें क्योंकि उसके राजनैतिक विचार हमसे अलग हैं।
हमें अपने देश में बढ़ते गुस्से और अलगाव को कम करना है। यह ठीक नहीं है, कम से कम युवाओं के लिए तो बिलकुल भी नहीं। उन्हें ऐसा नहीं बनना चाहिए। यह शुभ नहीं है।” उन्होंने घरों पर मालिकाना हक़, नौकरियों, कर्ज़ और युद्ध भड़कने की आशंका जैसे मसलों पर चर्चा की। इन मुद्दों को देखिये और हैली के विचारों को समझिये तो आपको लगेगा कि घुटने न टेकने का उनका निर्णय सही है। हैली को यह भी लग रहा है कि शायद – हालाँकि ऐसा होने की सम्भावना बहुत कम है – ट्रंप को उनके खिलाफ चल रहे मुकदमों की वजह से चुनाव लडऩे के लिए अपात्र घोषित कर दिया जाए। इसलिए हैली को लगता है कि जब तक संभव हो तब तक दौड़ में बने रहना उनका कर्तव्य है।
ऐसे सर्वेक्षण भी हुए हैं जिनमें मतदाताओं से यह पूछा गया कि अगर राष्ट्रपति चुनाव बाइडन बनाम हैली होते हैं तो वे किसे पसंद करेंगे और अगर उन्हें बाइडन और ट्रंप में से एक को चुनना हो तो वे किसे चुनेंगे। ऐसे सर्वेक्षणों में वे ट्रंप से आगे रही हैं। कुछ सर्वेक्षणों के अनुसार तो वे ट्रंप के मुकाबले १६ प्रतिशत आगे हैं।
बहरहाल, निक्की हैली का मैदान में जमे रहना अपने आप में सफलता है। इस तथ्य के बावजूद कि उनके ट्रंप हो हराने की सम्भावना शून्य है, वे मतदाताओं पर अच्छा प्रभाव छोड़ रही हैं। और हो सकता है कि २०२८ के चुनाव में वे सबसे आगे हों। मगर अब के लिए तो इस रीगन-समर्थक को सलाम। और वह इसलिए क्योंकि उन्होंने ट्रंप को देश को बर्बाद करने से रोकने की जीतोड़ कोशिश तो की। हैली को इसके लिए याद रखा जाएगा।

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