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कुख्यात ट्रंप: अमेरिका की पहली पसंद!

– श्रुति व्यास

हम लाख मखौल उड़ाएं लेकिन अमेरिका की पहली पसंद तो डोनाल्ड ट्रंप हैं। हाल फिलहाल के लिए, कम से कम यह तो मानना ही हैं कि वे अमेरिका के रिपब्लिकनों की पहली पसंद हैं। पिछले सोमवार को डोनाल्ड ट्रंप ने इस साल होने वाले राष्ट्रपति चुनाव का पहला मुकाबला जीता। रिपब्लिकन पार्टी का उम्मीदवार बनने के इच्छुक अन्य नेताओं को उन्होंने बहुत आसानी से हरा दिया। इस पूर्व राष्ट्रपति के उपासक इतने हैं कि कोई और उनके मुकाबले में ठहर ही नहीं पाया। वे डिबेट्स से गायब रहे और रिपब्लिकन समर्थकों के सामने उनके विकल्पों का ढेर था।बावजूद इसके ट्रंप फिर भी पहली पसंद! आयोवा कॉकस में उनकी धमाकेदार जीत से साफ़ है कि वे लोगों को बहुत ज्यादा भा रहे हैं।
पिछले आठ सालों से ट्रंप के अपने समर्थकों से जो रिश्ते हैं, उनकी कोई सानी नहीं है। वे अपने समर्थकों को सही बताते हैं, उनका मनोरंजन करते हैं, उनके लिए खड़े होते हैं और अपने राजनैतिक और कानूनी लाभ के लिए उनका इस्तेमाल भी करते हैं। समर्थक इस सबसे खुश हैं, बहुत खुश हैं। और यही कारण है कि चार आपराधिक प्रकरणों में ९१ अपराधों का आरोपी होने के बावजूद ट्रंप समर्थकों की पहली पसंद हैं।उन्हे रिपब्लिकन पार्टी में चुनौती देने वाला कोई नजर नहीं आता। उन्होंने साबित कर दिया है कि वे लम्बी रेस का घोड़ा हैं।
राष्ट्रपति चुनाव के सिलसिले में रिपब्लिकन पार्टी पर ट्रंप जिस तरह छाए हुए हैं, उसे देखकर यह विश्वास ही नहीं होता कि उनके अभियान की शुरूआत में उनकी स्थिति किस कदर कमजोर थी।
मिडटर्म (सन २०२२) में हुए चुनावों में ट्रंप-समर्थित उम्मीदवारों की हार के बाद कई रिपब्लिकनों को लगने लगा था कि अमेरिका की जनता का ट्रंप से जी भर गया है। अपने चुनाव अभियान की शुरुआत करते हुए मारलागो में ट्रंप ने जो भाषण दिया था उसमें न जोश था और न तीखापन। इससे भी ऐसा लगा कि मानों उनका सूरज अस्ताचल की ओर जा रहा है।
मगर आज १५ महीने बाद, ट्रंप फिर सबसे ऊपर हैं और यदि किसी की रिपब्लिकन पार्टी का उम्मीदवार बनने की सबसे ज्यादा सम्भावना है तो वे ट्रंप ही हैं। उन्हें कुछ नहीं रोक पाया – आपराधिक-अदालती मामले तो बिल्कुल ही नहीं। बल्कि वे अपने समर्थकों को यकीन दिलाने में सफल हैं कि वे गलत हो ही नहीं सकते, वे कभी हार ही नहीं सकते। उनके आकर्षण की चकाचौंध में उनके दोष नजऱ ही नहीं आ रहे हैं। उनके पक्के समर्थक रैलियों में उनकी जय-जयकार कर रहे हैं और ज़मीनी स्तर पर उनके लिए काम में जुटे हैं।
ट्रंप के कानूनी झमेले समर्थकों के लिए अहमियत नहीं रखते। अपने प्रचार में ट्रंप की भाषा और कड़क होती जा रही है। उन्होंने साफ़ कर दिया है कि वे अपनी दूसरी पारी में अपने राजनैतिक विरोधियों को मज़ा चखाएंगे।
चुनावों पर हिंसा का खतरा मंडरा रहा है और अधिकारियों व जजों को निशाना बनाए जाने की घटनाएं बढ़ रही हैं। फाइवथर्टीएट नामक वेबसाइट, जो चुनाव सर्वेक्षणों का विश्लेषण करती है, के अनुसार अमेरिकी रिपब्लिकनों में से ६३ फीसदी ट्रंप के साथ हैं। यहाँ तक कि २०२० में जो बाइडन की स्थिति से ट्रंप की आज की स्थिति बेहतर है।
यद्यपि आयोवा में ट्रंप की जीत निर्णायक थी मगर यह भी साफ़ हुआ है कि सत्ता में उनकी वापसी को लेकर पार्टी विभाजित है। आयोवा के करीब आधे रिपब्लिकनों ने ट्रंप के किसी न किसी प्रतिद्वंदी को वोट दिया। करीब २० प्रतिशत ने रॉन डेसेंटिस का समर्थन किया, जो दूसरे नंबर पर रहे। उनके ठीक पीछे निक्की हैली थी। एंट्रेंस पोल्स (एग्जिट पोल्स की तरह, मगर जिसमें मतदाता से मतदान केंद्र में घुसने से पूर्व पूछा जाता है कि वो किसे अपना मत देगा), जिन रिपब्लिकनों ने ट्रंप का विरोध किया उनमें गर्भपात का अधिकार देने के विरोधी रूढ़िवादी तत्व शामिल थे। उन्होंने डेसेंटिस का साथ दिया। डेसेंटिस और हैली दोनों की यही कोशिश है कि ट्रंप पर सीधे हमले करने की बजाय, ट्रंप के उनके समर्थकों के साथ रिश्ते कमज़ोर किये जाएं। मगर ट्रंप का विकल्प बनने की दौड़ में शामिल होने और उसमें जीत हासिल करने के लिए समय बहुत कम बचा है। अन्य उम्मीदवारों को जो भी करना है, वो जल्द से जल्द करना होगा। अब फोकस न्यू हैम्पशायर पर है जहाँ रिपब्लिकन उम्मीदवार के चयन का अगला प्राइमरी मुकाबला होना है।
आयोवा के मुकाबले के साथ अमेरिका में २०२४ के राष्ट्रपति चुनाव की शुरुआत हो गयी है। दोनों पार्टियों के प्राइमरी मुकाबलों के नतीजे में माना जाने लगा है कि अमेरिका के अब तक के सबसे उम्रदराज और फिलहाल सबसे अलोकप्रिय राष्ट्रपति जो बाइडन को गलियाने के लिए उनके सामने कुख्यात डोनाल्ड ट्रंप ही होंगे।

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